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बनारस धातु उभार (रिपॉसे) शिल्प

ऐतिहासिक शहर वाराणसी वैदिक युग से ही समृद्ध रिपॉसे शिल्प कला का घर रहा है. ऐसा माना जाता है कि यह शिल्प बनारस के रेशम हथकरघा उद्योग से भी पुराना है. रिपॉसे पारंपरिक कलाकारों द्वारा सोने और चांदी का इस्तेमाल कर विशिष्ट थालियाँ, दरवाजे, पारंपरिक आभूषण, परिधान और देवी-देवताओं की मुखाकृतियाँ बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली एक पद्धति है.

कलारूप

रिपॉसे अत्यंत रचनात्मक और अन्वेषणात्मक तकनीक है जिसमें व्यापक रूप से विविध अभिव्यक्तियों के सृजन की संभावना निहित है. इस पद्धति में ऐसी लचीली धातु का उपयोग किया जाता है जिसे पीछे से हथौड़े की चोट मार कर तराशा या अलंकृत किया जा सकता है जिससे सामने की ओर वांछित डिजाइन उभरता है. कसेरा समुदाय इस सदियों पुराने कौशल के रहस्यों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रखे हुए है. इस शिल्प का पूरा काम पारंपरिक उपकरणों का प्रयोग करते हुए हाथ से किया जाता है.

जीआई टैग

बनारस धातु उभार (रिपॉसे) शिल्प को 2016 में जीआई टैग प्रदान किया गया।