बेशकीमती सफेद लकड़ी या सफेद देवदार की लकड़ी पर बनाई गई उत्कृष्ट कलात्मकता प्रदर्शित करने वाली शानदार शिल्पकृतियों की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर वाराणसी में हुई थी. उदाहरणार्थ गजमूर्ति के निर्माण के लिए, उसके अवयवों की जटिल नक्काशी को कारीगर के कुशल हाथों से अलग-अलग जीवंत रूप देकर उसे आकार दिया जाता है.
कलारूप
वाराणसी काष्ठ उत्कीर्णन काष्ठकला का एक रूप है जिसमें कारीगर एक हाथ से काटने के उपकरण (चाकू), या दोनों हाथों से छेनी, या एक हाथ से छेनी और दूसरे हाथ से हथौड़े के संयोजन का उपयोग करता है. इन उपकरणों के साथ उसके हस्तकौशल के परिणामस्वरूप लकड़ी की वस्तु का सुंदर मूर्तन होता है.
इस शानदार रचना के लिए कारीगरों को पौराणिक आख्यानों, पशु-पक्षियों, ग्रामीण जीवन से, और दशावतार तथा नृत्यरत गुड़िया जैसे सुप्रसिद्ध आलंबनों तत्वों से प्रेरणा मिलती है. प्रत्येक शिल्प के संश्लिष्ट विस्तार में एक कथा पिरोई होती है, जो क्षेत्र की समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक महत्व को प्रतिबिंबित करती है.
जीआई टैग
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से 2018 में इस काष्ठ शिल्प को जीआई टैग प्राप्त हुआ जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस शिल्प का संवर्धन संभव हुआ और वह प्रचार मिला है जिसका यह अधिकारी है. इसका उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और इस क्षेत्र के कारीगरों को आजीविका-सुरक्षा भी मिली है.