सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में जम्मू और कश्मीर के पश्चिमी हिमालय की तलहटी में प्रचलित बसोहली चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ हैं प्राथमिक रंगों का जीवंत उपयोग और चेहरे की असाधारण संरचना. हिंदू पौराणिक कथाओं, मुगल लघु चित्रकला कौशल और आसपास की पहाड़ियों की लोक कला के संयोजन से 17वीं और 18वीं शताब्दी में चित्रकला की यह विशिष्ट शैली विकसित हुई.
कलारूप
बसोहली पेंटिंग के लिए आसानी से न मिलने वाले वील पेपर या आइवरी शीट का उपयोग कैनवास के रूप में किया जाता है. गिलहरी के बालों या कलमुन्हा पक्षी के पंखों से विशेष कूँचियाँ बनाई जाती हैं, और बड़ी मेहनत से सूखे फूलों, पत्तियों, भ्रमर के पंखों और खड़िया से रंगों का मिश्रण तैयार किया जाता है. अलंकरण के लिए शुद्ध चांदी और 24 कैरेट सोने का उपयोग किया जाता है.
जीआई टैग
जीवंत और चमकदार रंगों और अनोखी मुखाकृतियों के लिए प्रसिद्ध इस अनूठी चित्रांकन शैली को 2023 में जीआई टैग प्राप्त हुआ.