अपनी असाधारण मानवीय कलात्मकता और पर्यावरण के प्रति अनुकूलता के लिए प्रख्यात बसोहली ऊनी उत्पाद पूरी दुनिया में समाज के सर्वाधिक विशिष्ट वर्गों के लिए बेशकीमती धरोहर हैं। दक्ष बुनकर और कारीगर बसोहली पश्मीना शॉल की बुनाई और कढ़ाई पूरी तरह से हाथ से करते हैं।
कलारूप
बसोहली शॉल बनाने की कला में पश्मीना जैसे शानदार कपड़े पर हाथ से बुनाई या हाथ से ही कढ़ाई करने की उत्कृष्ट विधि का प्रयोग किया जाता है। इस अद्वितीय और विशेष कला के लिए अभूतपूर्व प्रतिभा और असाधारण स्तर की सावधानी, प्रतिबद्धता और पूरे मन से समर्पण की आवश्यकता होती है। ऊन से बालों को अलग करने की प्रक्रिया पहला चरण है, और फिर ऊन में कंघी फिराई जाती है और कताई के लिए छोटी लचीली बटियाँ बनाई जाती हैं। ऊन की बटियों की तन्यता में बेहतरी के लिए, एक स्थानीय चावल का आटा प्रयोग में लाया जाता है जिसे "चलिता" कहा जाता है। काते हुए धागे को मजबूत करने के लिए उसे चरखे पर दोगुना किया जाता है और उसमें बल डाला जाता है। अंत में, धागे को करघे पर लगाया जाता है, जहाँ कुशल बुनकर उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला शॉल बनाते हैं।
जीआई टैग
जम्मू और कश्मीर के कठुआ जिले के इस सौ साल पुराने शिल्प को 2023 में भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग दिया गया।