अपने चमकदार मिट्टी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध निजामाबाद पॉटरी के लिए आदर्श जगह है क्योंकि यहाँ स्थानीय तालाबों में अबरख (अभ्रक) मिली मिट्टी पाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि यह कला मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समय में शुरू हुई.
कलारूप
गर्मी के मौसम में मिट्टी को इकट्ठा किया जाता है और बाद में इस्तेमाल के लिए रखा जाता है. चाक पर बर्तनों को आकार देने के बाद उन्हें चाक से उतारा जाता है और कई दिनों तक धूप में सुखाया जाता है, फिर उन पर सरसों के तेल की एक परत चढ़ाई जाती है ताकि उसकी चमक बढ़े. चाक पर बर्तनों को एक बार और घुमाया जाता है ताकि आकार वगैरह में अगर कोई ऊँच-नीच हो गई हो वह खुरच कर निकल जाए और उसके दुरुस्त होने की गारंटी हो जाए. बर्तनों पर एक छोटी सूई से डिजाइनों को उकेरा जाता है और सरसों के तेल का लेप कर मिट्टी के सूख जाने पर उन्हें पकाने के लिए भट्ठे में डाला जाता है. भट्ठे का निर्माण जान-बूझ कर इस प्रकार किया जाता है कि ऑक्सीजन से मुक्त वातावरण मिले जिससे पकाए गए बर्तनों का वांछित रंग निर्धारित होता है.
जीआई टैग
इस श्याम सौन्दर्य को 2015 में जीआई के अंतर्गत मान्यता दी गई।