अपनी बेहतरीन नक्काशी और कारीगरी के लिए प्रतिष्ठित राजौरी चिकरी काष्ठकला, जम्मू के राजौरी जिले का गौरव है. हल्के शहद के रंग की मुलायम लकड़ी पर नजाकत से उकेरी जाने वाली यह बेशकीमती काष्ठकला श्रमसाध्य नक्काशी और सुंदर शिल्प कौशल द्वारा जीवंत हो उठती है.
कलारूप
चिकरी काष्ठशिल्प तैयार करने के लिए पहले लकड़ी का चयन किया जाता है, फिर उसे हाथ से चलाए जाने वाले विभिन्न औजारों से आकार दिया जाता है और
तराशा जाता है, और अंत में उसकी सतह को चमक और चिकनापन देने के लिए रेत से उसकी घिसाई की जाती है और उसे पॉलिश किया जाता है. यह सब करने के बाद सजावट के लिए आकृतियाँ उकेरी जाती हैं और जड़ाऊ काम किया जाता है. मुगल काल से ही यह शिल्प क्षेत्र में लोकप्रिय रहा है और डोगरा शासन के दौरान राजौरी इस कला का जीवंत केंद्र था.
चिकरी काष्ठकर्म का एक प्रतिनिधि नमूना है दोतरफा कंघी, जिसमें एक तरफ अविश्वसनीय रूप से महीन दाँत होते हैं और दूसरी तरफ जाली का नाजुक काम होता है.
जीआई टैग
नाबार्ड के सहयोग से 2021 में इस विशिष्ट शिल्प को, जो क्षेत्र की समृद्ध विरासत और कारीगरी का प्रतिबिंब है, जीआई टैग प्रदान किया गया.