ब्लॉक-प्रिंटिंग भारत के मुद्रित वस्त्र क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. जयपुर शहर से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित बगरू गाँव ने इस कला को 300 से अधिक वर्षों से संरक्षित रखा है. इस कला के मूल स्वरूप को संरक्षित रखने के उद्देश्य से इसमें विशिष्ट पैटर्न वाले पर्यावरण-अनुकूल और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रंगों का उपयोग किया जाता है.
कलारूप
हाथ से की जाने वाली पारंपरिक बगरू प्रिंटिंग प्रक्रिया साफ पानी में बुनावट की धुलाई से शुरू होती है. इसके बाद उस पर समुद्री नमक और अरंडी का तेल लगाया जाता है. फिर कपड़े को 'हरदा' घोल से उपचारित किया जाता है. प्राकृतिक रंगों को पकड़ने के लिए इस पद्धति में हरदा और फिटकरी जैसे प्राकृतिक संक्षारकों का उपयोग किया जाता है. उसके बाद, सूखे हरदा कपड़े को बिछाकर उसे टाँका लगाकर तान दिया जाता है ताकि वह छपाई के लिए तैयार हो. पहले स्याही रेख की छपाई की जाती है, फिर लाल रंग भरा जाता है, और इसके उलट भी किया जाता है.
जीआई टैग
इस कला को 2011 में जीआई के अंतर्गत मान्यता दी गई.