उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र की महिलाएँ विशेष रूप से ऐपन की पारंपरिक आनुष्ठानिक कला में निपुण होती हैं. ऐपन के डिजाइन में ज्यामितीय लयात्मक शैली का उपयोग उसी प्रकार किया जाता है जैसे देवी-देवताओं को रूपित करने वाले यंत्रों में किया जाता है.
कलारूप
बिन्दु से इस ऐपन कला का आरंभ होता है और पूर्णता भी बिन्दु से होती है. यही इस ऐपन कला की विशेषता है. आरंभिक बिन्दु सृष्टि के केंद्र का प्रतीक है और यह ऐपन के केंद्र में रखा जाता है. वातावरण में हो रहे परिवर्तनों को विविध पंक्तियों और शैलियों में रूपायित किया जाता है जो केंद्र से विकीरित होती हैं. ऐपन लोककला के उत्कर्ष में चंद्रवंश प्रमुख शक्ति रहा. समतल सतह बनाने के लिए लाल-भूरे गेरू का उपयोग किया जाता है. सतह पर डिज़ाइन बनाने के लिए एक सफेद घोल का उपयोग किया जाता है, जिसे बिस्वर कहते हैं. इसे पके हुए चावल को पानी के साथ पीसकर बनाया जाता है. डिज़ाइन बनाने के लिए मध्यमा, अनामिका और तर्जनी उंगलियों का प्रयोग किया जाता है.
जीआई टैग
उत्तराखंड ऐपन कला को नाबार्ड के सहयोग से 2021 में जीआई टैग प्राप्त हुआ.