भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में विशाल गंगा के तट पर बसा पवित्र शहर वाराणसी एक सांस्कृतिक केंद्र है. नरम पत्थर की जाली का काम राज्य का एक अनूठा शिल्प है जिसकी पहचान है पत्थर की प्राकृतिक शिराओं पर जटिल नक्काशी.
कलारूप
इस शिल्प में प्रयुक्त नरम पत्थर देश में पाए जाने वाले सबसे नरम चूना पत्थरों में से एक है. इस विशेषता कारण यह पत्थर महीन नक्काशी के लिए शिल्पकारों को बहुत पसंद आती है. यह उत्कृष्ट शिल्प कौशल सूक्ष्मता से विस्तृत कार्य करने में परिलक्षित होता है, जिसके लिए चिनाई और डिज़ाइन बनाने में सर्वोच्च निपुणता की आवश्यकता होती है. वाराणसी में नरम पत्थर की जाली का काम एक समय पूजा स्थलों, किलों और प्राचीन मूर्तियों में व्यापक रूप से दृष्टिगत होता था.
जीआई टैग
पीढ़ियों से चली आ रही इस समृद्ध शिल्प परंपरा को अब अनिच्छा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उत्पादन में तेजी लाने के लिए आधुनिक आधारभूत संरचना का अभाव है. इसके अलावा, कॉपीराइट के संबंध में जानकारी की कमी एक और बाधा है जिसके परिणामस्वरूप अप्रामाणिक उत्पादों की घुसपैठ होती है. इस बाधा को दूर करने के लिए, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से, शिल्प को 2016 में जीआई टैग के तहत मान्यता दी गई थी. इसने लगभग 3500 कारीगरों के जीवन को बदल दिया है, जो सबसे आसान उपकरणों का उपयोग करते हुए विशेषज्ञता, धैर्य और दृढ़ता के साथ शानदार शिल्प का निर्माण कर रहे हैं. अब उन्होंने अपने कार्य को पारंपरिक डिजाइनों से आगे बढ़ा लिया है और अब वे टाइल्स, पेपरवेट, पेन स्टैंड और