भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित पवित्र नगरी वाराणसी गुलाबी मीनाकारी की प्राचीन कला का स्थान रही है. वाराणसी की यह कला मूल रूप से फारस से आई और मुगल-काल में बनारस में फली-फूली. इसकी खासियत है धातु में उकेरी गई सफेद मीनाकारी पर अनोखी, कुशल और महीन गुलाबी पच्चीकारी.
कला
कला के इस महीन प्रकार में कारीगर धातु की सतह को विभिन्न खनिज तत्वों के टुकड़ों के मेल से सजाते हैं. हस्तशिल्प की इस सज्जा के लिए पहले सोने की धातु का इस्तेमाल किया जाता था जिसका स्थान अब चाँदी और तांबे ने ले लिया है. इस कला को गुलाबी मीनाकारी नाम इसलिए दिया गया है कि इसमें मुख्य रूप से गुलाबी रंग का उपयोग किया जाता था जबकि धीरे-धीरे इसमें अनेक रंगों के मेल की झिलमिलाती छटा दिखने लगी है. भारत में धातु की इस कला को व्यापक रूप से मीनाकारी के नाम से जानते हैं और मीनाकारी करने वालों को मीनाकार कहते हैं.
जीआई टैग
माँग के घटते जाने और अ-प्रामाणिक उत्पादों की घुसपैठ के कारण यह दुर्लभ कारीगरी विलुप्त होने लगी और स्थिति यहाँ तक पहुँची कि मीनाकारी करने वाले केवल 30 कारीगर ही इस काम में लगे रहे. इस कला के खोए हुए गौरव को वापस लाने के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने 2015 में इस कला को जीआई टैग के अंतर्गत मान्यता दिलाने के लिए सहयोग दिया. इस मान्यता से कारीगरों को नया जीवन मिला और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों के द्वार खुले. वर्तमान में लगभग 500 कारीगर गुलाबी मीनाकारी की इस अनोखी कला को जीवित रख रहे हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और वहाँ की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस से भी गुलाबी मीनाकारी को प्रशंसा मिली है.