उस्ता कला बीकानेर (राजस्थान) के हुनरमंद कारीगरों द्वारा ऊँट के चमड़े पर सोने से की जाने वाली ऐसी जादुई मीनाकारी है जिससे राजसी भव्यता टपकती है. आज यह मीनाकारी लकड़ी, आईनों और संगमरमर पर भी की जाने लगी है. कला का यह रूप बहुत समय तक टिकने वाले सुनहले रंग की अनुपम गुणवत्ता को सामने लाती है.
कला
उस्ता कला अपेक्षाकृत व्यापक अभिव्यक्ति है जिसमें विविध कलारूपों और तकनीकों का मिश्रण शामिल है. हाल के वर्षों में सुनहरी मुन्नावती नक्काशी को बहुत प्रमुखता मिली है. इस कला के लिए गहन कौशल और धीरज की आवश्यकता होती है. पहले कागज पर डिजाइन तैयार किए जाते हैं जिन्हें नील या काले कोयले के चूर्ण की सहायता से सतह पर उकेरा जाता है. लेप के लिए अवलेह (पेस्ट) तैयार करने के लिए मिट्टी के पात्र में रखी रेत का उपयोग किया जाता है, जिसमें कभी-कभी गोंद और जैगरी को मिश्रित किया जाता है.
जीआई टैग
इस तकनीक के श्रमसाध्य होने और प्रतिफल के आकर्षक न होने के कारण, इस समुदाय के युवा इस कला के संरक्षण से और इस कला को अपनाने से अधिकांशत: विमुख हो गए थे. इस कला में नई जान फूँकने और इसके लिए लाभप्रद मार्ग तैयार करने के उद्देश्य से नाबार्ड ने इसके जीआई पंजीकरण के लिए सहयोग प्रदान किया. इस कला को 2023 में जीआई टैग के अंतर्गत मान्यता दी गई और इसकी एप्लिकेशन संख्या 753 है.