मूल रूप से उत्तर कर्नाटक के बागलकोट जिले के पिट लूमों में तैयार की जाने वाली इल्कल साड़ियों को टोपे टेनी तकनीक का उपयोग करते हुए बुना जाता है. इसमें सिल्क के पल्लू की अलग से बुनाई की जाती है और फिर उसे शरीर पर लिपटने वाले हिस्से के साथ क्रमिक फंदे लगाकर गूथा जाता है और यही इन साड़ियों की खासियत है.
उत्पाद
कर्नाटक के बागलकोट जिले के इल्कल शहर के नाम पर इन साड़ियों को इल्कल साड़ी का नाम दिया गया है. इल्कल साड़ियों के मूल डिजाइन में सीधी शैलियों की साड़ियों के पल्लू में पूरक अभिप्राय वाली आकृतियाँ बुनी गई होती हैं जैसे कमल, पालकियाँ, मंदिर संरचनाएँ और हाथी. इल्कल साड़ियों की चार से छह इंच तक की चौड़ी किनारी इन साड़ियों का मूल आकर्षण है. मूल साड़ी और उसके पल्लू की चित्ताकर्षक किनारियाँ इस परिधान को अतुलनीय आकर्षक रूप देती हैं. एक-एक साड़ी को हाथ से बुनने में कारीगर अत्यंत सावधानी बरतता है और भारी परिश्रम करता है.
जीआई टैग
इल्कल साड़ियों को नाबार्ड के सहयोग से 2007 में जीआई टैग प्रदान किया गया.