राजस्थान का यह युगों पुराना शिल्प एक सांस्कृतिक प्रतीक है और एक संपोषित प्रदर्शन कला है. काष्ठ-निर्मित कठपुतलियाँ कठपुतली नचाने वालों की रचनाएँ हैं जिन्हें नट या भाट कहते हैं. आज यह लोककला पूरी दुनिया में शिक्षण का एक प्रभावी माध्यम बन चुकी है.
कला
रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों और आभूषणों से सुसज्जित ये जीवंत कठपुतलियाँ एक सांस्कृतिक प्रतीक हैं. कलाकारों का यह समुदाय हाथ से इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों से घर पर ही इन आकर्षक कठपुतलियों का निर्माण करते हैं और उन्हें वस्त्रों, गहनों और शृंगार के अन्य साधनों से सजाते हैं. कठपुतलियाँ, उन्हें बनाने वाले और कठपुतलियाँ नचाने वाले – कठपुतली कला को निश्चित रूपाकार देने में इन सभी की विशिष्ट भूमिका है. राजस्थान के सामाजिक जीवन में इन सबकी हिस्सेदारी है.
जीआई टैग
जीआई का पंजीकरण वर्ष 2006 में हुआ और नाबार्ड ने इस समुदाय के और कारीगरों/ उत्पादकों के पंजीकरण की पहल की. नाबार्ड की वित्तीय सहायता से राजस्थान की कठपुतली के अंतर्गत 293 अतिरिक्त प्राधिकृत उपयोगकर्ताओं का पंजीकरण किया गया.