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संभल का सींग शिल्प

संभल (उत्तर प्रदेश) का सदियों पुराना सींग शिल्प कौशल और संधारणीयता का उत्कर्ष है. यह उद्योग पर्यावरण के अनुकूल भी है क्योंकि इसका कच्चा माल मृत जानवरों से मिलता है.

कला

पुराकथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में शिकार पर जाने वाले लोगों को पता चला कि भैंसे का सींग खोखला होता है तो उन्होंने सींग का उपयोग पानी ले जाने के साधन के रूप में करना शुरू किया. तत्कालीन अर्थव्यवस्था में एक तबके ने इस जानकारी का लाभ शिल्पकर्म के लिए किया जो आज अनेक शिल्पियों की आय का प्रमुख स्रोत है. स्थानीय कसाईखाने जिसे कचड़ा मानकर फेंक देते हैं वही इस उद्योग में काम आता है. खोपड़ी की सींग से जुड़ी अस्थियों को हटा दें तो सींग का एक हिस्सा खोखला और दूसरा ठोस होता है. इन अस्थियों और सींग की धुलाई कर उन्हें धूप में सुखा देने के बाद स्वाभाविक रूप से उनकी गंध निकल जाती है और संभल के इस शिल्प के लिए वे सर्वथा उपयुक्त हो जाते हैं.

जीआई टैग

इस शिल्प को अभी भी लोकप्रिय बनाए रखने वाले समुदाय को सहयोग देने के उद्देश्य से नाबार्ड के प्रयासों से इस कलाशिल्प को जीआई के अंतर्गत मान्यता दिलाने में सहायता उपलब्ध कराई.