गोरखपुर की टेराकोटा कला पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसमें कुम्हार हाथ से लगाए गए अलंकरणों के साथ घोड़ों, हाथियों, ऊँटों, बकरियों और बैलों सहित विभिन्न जानवरों की मूर्तियाँ बनाते हैं।
कलारूप
औरंगाबाद, भरवलिया और बूढ़ाडीह जिलों के तालाबों में पाई जाने वाली "काबिस" मिट्टी का उपयोग टेराकोटा उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार की मिट्टी केवल मई और जून में ही पाई जाती है। इन खूबसूरत उत्पादों के निर्माण में कोई अतिरिक्त रंग नहीं मिलाया जाता। कारीगर मिट्टी को सोडा और आम के पेड़ की छाल के घोल में डुबाने के बाद पकाते हैं। टेराकोटा की इन मूर्तियों की अनूठी विशेषता यह है कि इनका लाल रंग समय के साथ कभी फीका नहीं पड़ता।
जीआई टैग
गोरखपुर टेराकोटा को 2020 में जीआई टैग प्राप्त हुआ।