Digitalizing Cooperatives

लद्दाख शिंग्सकोस (लकड़ी पर नक्काशी)

लकड़ी पर नक्काशी लद्दाख की एक आकर्षक कला तकनीक है जिसका प्रयोग इस क्षेत्र में लगभग 600 वर्षों से किया जा रहा है. लकड़ी पर नक्काशी की कला समय के साथ और अधिक लोकप्रिय हो गई है, और क्षेत्र की विशिष्ट कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत शानदार शिल्प-कौशल में प्रदर्शित होती है. इस कलारूप को व्यापक मान्यता प्राप्त है और धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कारणों से, विशेष रूप से बौद्ध देशों में इसकी बहुत माँग है.

कलारूप

लद्दाखी कलात्मक परंपराओं पर तिब्बती बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव है. लकड़ी पर नक्काशी के कई अलग-अलग अनुप्रयोग हैं, जिन्हें दैनंदिन उपस्कर और बर्तनों से लेकर आंतरिक सजावट की वस्तुओं और धार्मिक और व्यावसायिक भवनों की वास्तुकला में देखा जा सकता है. लद्दाख की लकड़ी की नक्काशी की विस्तृत शैलियों और विषय-वस्तुओं में देवता, फूल, पशु-पक्षी, ड्रैगन और अन्य जीव शामिल हैं. इस नक्काशी में प्रयुक्त रंगों का गहरा सांस्कृतिक और आनुष्ठानिक महत्व है.

जीआई टैग

लद्दाख लकड़ी की उत्कृष्ट नक्काशी, जिसे 'लद्दाख शिंग्सकोस' के नाम से भी जाना जाता है, इस संघ राज्य क्षेत्र का पहला हस्तशिल्प है जिसे 2022 में नाबार्ड के सहयोग से भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग प्राप्त हुआ.