लकड़ी की प्राकृतिक धारियों पर विभिन्न रंगों का समारोह वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के कुंडेर खरादी समुदाय की अनोखी कारीगरी है. इस समुदाय के लोग कई पीढ़ियों से इस लोकप्रतिष्ठित कला के संरक्षक रहे हैं जिसमें लकड़ी के ऐसे खिलौने बनाए जाते हैं जिनमें कोई जोड़ नहीं होता.
कला
खिलौने तैयार करने के लिए चाकू और दूसरे तीक्ष्ण उपकरणों से लकड़ी को काटा और छीला जाता है और उन्हें इच्छित आकार दिया जाता है. खिलौनों के निर्माण-शिल्प के अंतर्गत कलमदानी, सिंदूरदानी, धार्मिक कलाकृतियों, देवी-देवताओं की मूर्तियों, पशुओं, पक्षियों की आकृतियों और संदूकों के निर्माण जैसी अधिक पारंपरिक वस्तुओं के अलावा गोलाकार, व्यासीय और बेलनाकार खिलौने भी बनाए जाते हैं. इन कलाकारों का पूरा जीवन अपने शिल्प के चतुर्दिक् घूमता है. इस समुदाय में जब बच्चे का जन्म होता है तो परिवार में एक नया खराद भी लाया जाता है. स्थानीय रिवाज के मुताबिक विवाह तय करते समय वर पक्ष यह सुनिश्चित करता है कि भावी वधू को खराद पर काम करने की कला आती हो.
जीआई टैग
इस जीवंत शिल्प को 2015 में जीआई टैग दिया गया और लगभग एक दशक पहले मिली यह मान्यता इस कला को अनेक देशों में लोकप्रिय बनाने में सहायक सिद्ध हुई है.