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उत्तराखंड के तमता उत्पाद

खाना पकाने के तांबे के बर्तनों और अन्य पात्रों पर फूलों, पंखुड़ियों, लताओं, बेलों और देवी-देवताओं की आकृतियों के उत्कीर्णन का यह उत्कृष्ट ताम्रशिल्प ईसा की 16वीं शताब्दी में शुरू हुआ. पुराकथाओं के अनुसार प्राचीन तमता शिल्प का उद्भव तब हुआ जब राजस्थान के चंद्रवंशी लोग चंपावत के पर्वतीय राज्य में आकर बसे.

कला

यह पेचीदा प्रक्रिया कारीगरों द्वारा धातु के पतरे पर कम्पास की सहायता से एक वृत्त खींचने के साथ शुरू होती है. फिर धातु के वृत्ताकार पतरे को अलग काट लिया जाता है और उसे हथौड़े से पीट-पीट कर गोलार्ध का आकार दिया जाता है जो पात्र के आधार के रूप में काम करता है. प्रत्येक हिस्से को अलग-अलग निर्मित किया जाता है और फिर सोल्डरिंग कर उन्हें जोड़ा जाता है. अंत में उत्पाद को सुखाने के पहले भट्ठी में तपाया जाता है.

जीआई टैग

इस शिल्प के अनोखेपन को देखते हुए नाबार्ड ने 2021 में इसे जीआई पहचान दिलाने में सहयोग दिया. इसके परिणामस्वरूप कारीगर इस विशेष शिल्प के संरक्षण के लिए प्रोत्साहित हुए हैं और अधिकाधिक लोगों को आकर्षित करने के लिए अपने शिल्प का परिष्कार करने के लिए प्रेरित भी हुए हैं.