कारीगर रिंगाल बाँस की हल्की और गहरी पट्टियों को कुशलता से मिलाकर अनोखे डिजाइन तैयार करते हैं. बाँस की यह किस्म पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक दृष्टियों से बहुत महत्त्व रखती है और हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र के सघन वनों में पाई जाती है.
कला
अधिक जल-प्रतिरोधी होने के कारण बाँस की यह विशिष्ट किस्म बर्फ से ढके हिमालयीन क्षेत्र के लिए अधिक उपयुक्त होती है. अंतिम उत्पाद की आवश्यकता के हिसाब से पूरे रिंगाल की अलग-अलग लंबाई और चौड़ाई में छोटी पट्टियाँ तैयार की जाती हैं. कारीगर रिंगाल बाँस की हल्की और गहरी पट्टियों को कुशलता से मिलाकर अनोखे डिजाइन तैयार करते हैं. अंतिम उत्पाद के किनारों को छीलकर उन्हें चिकना बनाया जाता है.
जीआई टैग
यह शिल्प और अधिक ऊँचाई हासिल करे, इस उद्देश्य से नाबार्ड ने जीआई के अंतर्गत मान्यता की इस यात्रा में सहयोग दिया और रिंगाल बाँस शिल्प को 2021 में यह विशिष्ट मान्यता प्राप्त हुई.