नाबार्ड का कॉर्पोरेट आयोजना विभाग (सीपीडी) संगठन के विभिन्न कार्यपरक विभागों के बीच समन्वय स्थापित करने का महत्वपूर्ण दायित्व निभाता है. यह वह खिड़की है जिसके माध्यम से नाबार्ड नीतिगत मामलों पर भारत सरकार के साथ और विकास परियोजनाओं के निधीयन के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय निकायों के साथ संवाद करता है. यह विभाग जो विश्लेषण करता है उससे न केवल नाबार्ड को वार्षिक ऋण आयोजना और बजट तैयार करने में मदद मिलती है, बल्कि नीतिगत विषयों पर सरकार के समक्ष समष्टिगत परिप्रेक्ष्य को रखने में भी सहायता मिलती है. विभाग एक परामर्श तंत्र के माध्यम से समग्र रूप से संगठन की निर्णयन क्षमता की गुणवत्ता को बेहतर बनाने पर बल देता है.
विभाग के मूल कार्य:
नाबार्ड की वार्षिक व्यवसाय योजना तैयार करना
सीपीडी नाबार्ड की वार्षिक व्यवसाय योजना तैयार करने के लिए संगठन के भीतर अन्य विभागों के साथ समन्वय स्थापित करता है.
कृषि और ग्रामीण विकास सेक्टरों के लिए संसाधन आबंटन में सहयोग देना
सीपीडी परामर्श और अनुसंधान के एक तंत्र के माध्यम से सेक्टर की कमियों की पहचान करता है और भारत सरकार को उसकी वार्षिक बजटीय प्रक्रिया में संसाधनों के आबंटन की आवश्यकता के संबंध में प्रस्ताव देता है.
भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों और नीति आयोग के साथ संबंध बनाना
सीपीडी कृषि ऋण, ग्रामीण विकास और सम्बंधित विषयों से जुड़े मामलों पर भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और नीति आयोग के साथ विचार-विमर्श करता है और समन्वय स्थापित करता है. इससे जमीनी वास्तविकताओं और प्रबंध सूचना प्रणाली पर आधारित नीतियों के निर्माण में सहायता मिलती है.
भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ संवाद
सीपीडी कृषि और ग्रामीण विकास, ऋण आयोजना, अनुप्रवर्तन और परिचालन के मुद्दों पर भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ संवाद करता है. विभाग क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और ग्रामीण सहकारी बैंकों की पर्यवेक्षण प्रक्रिया और उनको सहयोग से सम्बंधित समस्याओं के विषय में भी भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ संवाद स्थापित करता है.
अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों के साथ बातचीत
सीपीडी कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में नवोन्मेषी विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ बातचीत करता है.
संसद से सम्बंधित मामले देखना
सीपीडी संसदीय समितियों के साथ विचारणीय विषयों पर सूचनाओं की प्रस्तुति के लिए नोडल विभाग है. यह विभाग कृषि और अनुषंगी क्षेत्रों तथा ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं से संबंधित विषयों पर सांसदों द्वारा उठाए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को जानकारियाँ/ सूचनाएँ प्रस्तुत करता है.
ऋण आयोजना और अनुप्रवर्तन
सीपीडी जिला-वार संभाव्यता-युक्त ऋण योजनाएँ तैयार करने के लिए नीतिगत दिशानिर्देश तैयार करता है. इन योजनाओं से आधारभूत संरचना और लिंकेज सहायता सम्बन्धी अंतरालों/ कमियों की पहचान करने में सहयोग मिलता है. यह योजनाएँ सम्बंधित जिले में स्थित बैंकों द्वारा तैयार की जाने वाली वार्षिक ऋण योजना के लिए आधार बनती हैं.
राज्य फोकस पेपर तैयार करने के लिए दिशानिर्देश जारी करना
सीपीडी प्रत्येक राज्य में तैयार किए जाने वाले राज्य फोकस पेपर (एसएफपी) के लिए दिशानिर्देश जारी करता है. इस पेपर में मुख्य रूप से राज्य में ऋण प्रवाह को सहज बनाने के उद्देश्य से आधारभूत संरचना और लिंकेज सहायता सम्बन्धी आवश्यकताओं को सामने लाने पर जोर दिया जाता है. एसएफपी वस्तुतः जिला-स्तरीय संभाव्यता-युक्त ऋण योजनाओं का जोड़ है और यह पेपर वार्षिक ऋण आयोजना और बजट निर्धारण में राज्य-स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) को सहयोग देता है.
जिला विकास प्रबंधकों (डीडीएम) के कामकाज का समन्वय
सीपीडी पूरे देश में ऋण आयोजना, अनुप्रवर्तन और समन्वय के क्षेत्रों में जिला विकास प्रबंधकों का मार्गदर्शन और उन्हें सहयोग प्रदान करता है. जिला विकास प्रबंधक को अपने सम्बंधित जिले में ऋण नियोजन के लिए ऋण आयोजना, अनुप्रवर्तन और समन्वय तथा बैंकों, हितधारकों और अन्य विकास एजेंसियों के साथ तालमेल बिठाते हुए समन्वित पद्धति विकसित करने का प्राथमिक दायित्व सौंपा जाता है. 15 जून 2024 की स्थिति के अनुसार, देश में 10 संघ राज्य क्षेत्रों सहित 455 जिलों का प्रबंधन 509 अधिकारियों [455 डीडीएम और 54 डीडीएम (आर)] द्वारा किया जाता है.
पूर्वोत्तर राज्यों के ऋण और विकास सम्बन्धी मुद्दों पर काम करना
सीपीडी देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के, ऋण आयोजना, अनुप्रवर्तन और विकास सम्बन्धी मुद्दों के हल के लिए काम करता है.
बैंकों के साथ आवधिक परामर्श में सहयोग
कृषि ऋण से सम्बंधित मुद्दों और कृषि तथा अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ऋण में वृद्धि हेतु आवश्यक पहलों पर विचार-विमर्श के लिए सीपीडी बैंकों के प्राथमिकता क्षेत्रों के प्रमुखों के साथ आवधिक बैठकों का आयोजन करता है.
कृषि ऋण के लिए डाटा वेयरहाउस के रूप में भूमिका
सीपीडी विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा आधार-स्तरीय कृषि ऋण से सम्बंधित डाटा का अनुप्रवर्तन करता है और उन्हें व्यवस्थित रीति से एकत्र करता है. सीपीडी यह जानकारी भारत सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक आदि को उपलब्ध कराता है.
परिवादों और शिकायतों का निवारण
सीपीडी भारत सरकार द्वारा अग्रेषित परिवादों/ शिकायतों एवं बैंकों के खिलाफ ग्राहकों से सीधे प्राप्त शिकायतों के समाधान में सहयोग देता है.
बाह्य संस्थाओं के साथ परियोजनाएँ:
विदेशी सहायता प्राप्त परियोजनाओं को अवधारित करने, उनकी रूपरेखा तैयार करने, उन्हें कार्यान्वित करने और उनका अनुप्रवर्तन करने का कार्य संयुक्त रूप से नाबार्ड तथा केएफडब्ल्यू, ज़ीआईज़ेड जैसी द्विपक्षीय विकास एजेंसियों और आईबीआरडी, एडीबी आदि बहुपक्षीय एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है. ये परियोजनाएँ देश के दूर-दराज के इलाकों तक विकास की पहलों को पहुँचाती हैं क्योंकि इन एजेंसियों की विशेषज्ञता और अंतरराष्ट्रीय अनुभव से महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है. समृद्ध अनुभव के आदान-प्रदान के अलावा, ये परियोजनाएँ सभी साझेदारों की क्षमता बढ़ाती हैं और साथ ही संस्थागत क्षमताओं में भी वृद्धि करती हैं. गत वर्षों में नाबार्ड ने स्विस डेवलपमेंट को-ऑपरेशन, एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक, यूरोपीय संघ और जर्मन डेवलपमेंट को-ऑपरेशन के साथ निकट साझेदारी की है.
नाबार्ड तीन दशक से अधिक समय से केएफडब्ल्यू के साथ साझेदारी कर रहा है. नाबार्ड कृषि और ग्रामीण विकास के विविध क्षेत्रों में विकास के मॉडलों के परीक्षण के लिए ज़ीआईज़ेड और केएफडब्ल्यू जैसी बाह्य संस्थाओं के सहयोग/ उनकी सहायता का उपयोग करता है. विकास की इन परियोजनाओं/ मॉडलों/ प्रयोगों के आधार पर नाबार्ड सफल और प्रभावी सहयोगों को अपने संसाधनों का उपयोग करते हुए मुख्य धारा में लाता है. केएफडब्ल्यू और ज़ीआईज़ेड के सहयोग से वर्तमान में कार्यान्वित की जा रही कुछ परियोजनाओं का विवरण निम्नानुसार है:
क्र. सं. |
परियोजना का नाम |
उद्देश्य |
1 |
केएफडब्ल्यू –ख़राब हो चुकी मृदा को पुनः ठीक करने और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए वाटरशेड विकास का एकीकरण (एसईडब्ल्यूओएच-II) |
इसका लक्ष्य चुने हुए वाटरशेडों में मृदा और जल संसाधनों के स्थिरीकरण, उनमें वृद्धि और उनके संधारणीय उपयोग के माध्यम से, जलवायु परिवर्तन से तुरंत प्रभावित हो जाने की लघु कृषकों की स्थिति में सुधार लाना है. यह परियोजना केरल और झारखण्ड राज्यों की 55 पूर्ण हो चुकी वाटरशेड परयोजनाओं में कार्यान्वित की जा रही है. कार्यक्रम का कार्यान्वयन जारी है और यह दिसंबर 2023 तक वैध है. |
2 |
केएफडब्ल्यू – ख़राब हो चुकी मृदा को पुनः ठीक करने और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए वाटरशेड विकास का एकीकरण (एसईडब्ल्यूओएच-III)
|
इसका लक्ष्य चुने हुए वाटरशेडों में मृदा और जल संसाधनों के स्थिरीकरण, उनमें वृद्धि और उनके संधारणीय उपयोग के माध्यम से, जलवायु परिवर्तन से तुरंत प्रभावित हो जाने की लघु कृषकों की स्थिति में सुधार लाना है. यह परियोजना तीन राज्यों, नामतः बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के 48 वाटरशेडों में कार्यान्वित की जाएगी. कार्यक्रम की वैधता दिसंबर 2024 तक है. |
3 |
ज़ीआईजेड तकनीकी सहकार परियोजना : ‘भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए मृदा संरक्षण और पुनरुद्धार परियोजना (प्रोसॉयल)’ |
इस कार्यक्रम का उद्देश्य लगभग 153,000 हेक्टेयर में मृदा संरक्षण के उपायों का संवर्धन करना है. इसमें से 53,000 हेक्टेयर गैर-सरकारी संगठनों द्वारा दिए गए सहयोग वाले लक्षित क्षेत्रों में है और 100,000 हेक्टेयर फसल की उत्पादकता में सुधार लाने के लिए महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश राज्यों में डिजिटल परामर्श प्लेटफॉर्म के लक्षित क्षेत्रों में है. कार्यक्रम की वैधता दिसंबर 2017 तक थी जिसे दिसंबर 2024 तक विस्तार दिया गया है. |
केएफडब्ल्यू और ज़ीआईजेड के सहयोग से वर्तमान में कार्यान्वित की जा रही परियोजनाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक देखें:
कार्यान्वित की जा रही चालू परियोजनाएँ
संपर्क विवरण
श्री सतीश बी राव
मुख्य महाप्रबंधक
दूसरा माला, 'सी' विंग
सी-24, 'जी' ब्लॉक
बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स, बांद्रा (पूर्व)
मुंबई - 400 051
टेली: 9199
टेली: 9212
ई-मेल पता: cpd@nabard.org