देश की ग्रामीण वित्तीय प्रणाली के लिए एक ऐसी सुदृढ़ और प्रभावी ऋण वितरण प्रणाली आवश्यक है जो कृषि और ग्रामीण विकास के लिए बढ़ती और विविध ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हो. ग्रामीण ऋण वितरण प्रणाली में संलग्न ग्रामीण सहकारी बैंक (आरसीबी) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) दो महत्वपूर्ण संस्थाएं हैं.
नाबार्ड की स्थापना से ही संस्था विकास विभाग (आईडीडी) ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ कर इस दिशा में अग्रणी रहा है. यह विभाग भारत सरकार (जीओआई), भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई), राज्य सरकारों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के प्रयोजक बैंकों के साथ मिल कर ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित पहल करता है.
विभाग के प्रमुख कार्य
क. ग्रामीण सहकारी बैंकों का विकास:
a. विकासात्मक पहल:
- ग्रामीण सहकारी संस्थाओं से संबंधित मामलों में नीतिगत सहायता.
- सिस्टमिक डाटा संग्रहण, डाटा विश्लेषण के माध्यम से ग्रामीण सहकारी बैंकों की समीक्षा और अनुप्रवर्तन करना और उन मुद्दों को रेखांकित करना जिनका निवारण सुधार के माध्यम से किया जा सकता है.
- पुनर्पूंजीकरण / पुनर्संरचना और अन्य सुधार जैसे विभिन्न सुधारात्मक उपायों के माध्यम से कमज़ोर बैंकों की वित्तीय हालत में सुधार लाने के लिए भारत सरकार की सहायता करना.
- भारत सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक, संसदीय समितियों और अन्य संस्थाओं के लिए नीतिगत पत्र तैयार करना.
- अल्पावधि (एसटी) और दीर्घावधि (एलटी) ग्रामीण सहकारी संस्थाओं के परिचालनों की समीक्षा.
- ग्रामीण सहकारी बैंकों और सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं (सीटीआई) को मानव संसाधनों के क्षमता निर्माण के लिए सहकारिता विकास निधि के माध्यम से सहायता, पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू और कश्मीर तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह राज्यों के लिए विशेष विकास पैकेज; प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कंप्यूटरीकरण के लिए प्रोत्साहन अनुदान सहायता प्रदान करने के लिए सहकारिता विकास निधि – योजना
- सहकारिता विकास निधि – ग्रामीण सहकारी बैंकों (आरसीबी) में व्यापार विविधिकरण और उत्पादन नवप्रवर्तन (बीडीपीआई) के गठन के लिए सहायता.
- सहकारिता विकास निधि – प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्रों में अंतरण के लिए विभिन्न प्रसारात्मक उपायों के लिए अनुदान सहायता.
- सहकारिता विकास निधि – ग्रामीण सहकारी ऋण संस्थाओं को प्रकाशनों के लिए अनुदान सहायता की योजना.
- सहकारिता से संबंधित मामलों पर ग्रामीण सहकारी बैंकों, राज्य सरकारों, भारत सरकार और अन्य हितधारकों के साथ समन्वय.
- सहकारी समितियों के निबंधकों (आरसीएस) और राज्य सहकारी बैंकों तथा राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों (एससीएआरडीबी) के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों की आवधिक बैठकों का आयोजन.
- ग्रामीण सहकारी बैंकों के कार्यनिष्पादन से संबंधी सांख्यिकीय विवरणियों का प्रकाशन.
ख. मानव संसाधन पहल:
- प्रक्रियाओं में सुधार, प्रौद्योगिकी उन्नयन और मानव संसाधन विकास के लिए ग्रामीण सहकारी बैंकों की सहायता.
- वरिष्ठ और माध्यम स्तरीय कार्यपालकों का व्यवसायीकरण
- सहकारी बैंक कार्मिक प्रशिक्षण वित्तीय सहायता योजना (एसओएफ़टीसीओबी) के अधीन सहकारी बैंकों के प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना.
- प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थाओं के माध्यम से संगठन विकास हस्तक्षेप कार्यक्रमों का आयोजन
- बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान, लखनऊ में स्थापित व्यावसायिक उत्कृष्टता सहकारिता केंद्र (सी-पैक) के माध्यम से सहकारिता प्रशिक्षण संस्थाओं का प्रमाणन
- ग्रामीण सहकारी बैंकों (आरसीबी) में कारपोरेट शासन सूचकांक का विकास और इसका कार्यान्वयन.
- कोविड संबंधित यातायात प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं और नाबार्ड के प्रशिक्षण संस्थाओं को सहकारी संस्थाओं के कार्मिकों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण की अनुमति दी गई.
ख. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का विकास
क. विकास पहल:
- छमाही आधार पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण संबंधी मामलों की देखरेख
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सांविधिक लेखापरीक्षकों को उपलब्ध करवाना
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम में संशोधन से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह प्रदान कराना
- मानव संसाधन मामलों पर संसदीय समिति और स्थायी सलाहकार समिति विधान से संबंधित विषयों की देख रेख
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का सांख्यिकीय प्रकाशन करना और अध्ययनों का आयोजन
- विभिन्न समितियों को सहायता
ख. मानव संसाधन पहल :
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अध्यक्षों की समिति-आधारित नियुक्तियाँ.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निदेशक मंडलों में नाबार्ड के नामिती निदेशकों की नियुक्ति और अनुप्रवर्तन.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में भर्ती और नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देना.
- बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (आईबीपीएस) और समान लिखित परीक्षा (सीडबल्यूई) के माध्यम से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में भर्ती प्रक्रिया से समन्वय.
- नियुक्तियाँ और पदोन्नति नियमावली (एपीपीआर) और सेवा विनियमनों में संशोधन के मामले में भारत सरकार को सलाह देना.
- भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में पेंशन योजना के कार्यान्वयन का अनुप्रवर्तन.
- संयुक्त सलाहकार समिति की बैठकों का आयोजन.
ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के लिए विभाग के कार्यक्रम
क. बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्रों के रूप में प्राथमिक कृषि ऋण समितियां
नाबार्ड के पुनर्वित्त विभाग ने वर्ष 2020-21 से तीन वर्षों की अवधि में सभी संभाव्यतायुक्त प्राथमिक कृषि ऋण समितियों को बहु सेवा केन्द्रों में बदलने के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधा आरंभ की है जिसमें प्राथमिक कृषि ऋण समितियों द्वारा गुणवत्ता वाली आधारभूत संरचना (पूंजीगत आस्तियां) के निर्माण और सदस्यों की उभरती आवश्यकताओं के अनुरूप व्यापार संभाग(पोर्टफोलियो) बढ़ाने के लिए राज्य सहकारी बैंकों को 3% की रियायती पुनर्वित्त सहायता दी जाती है. इस ऋण सुविधा के अधीन नाबार्ड ने 35,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के बहु सेवा केन्द्रों में अंतरण की योजना बनाई है. प्राथमिक कृषि ऋण समितियों से वसूल की जाने वाली ब्याज दर नाबार्ड द्वारा लगाई गई ब्याज दर से अधिकतम 1% से अधिक नहीं होगी जोकि परस्पर सहमत शर्तों पर राज्य सहकारी बैंक और ज़िला मध्यवर्ती सहकारी बैंक मिलकर वहन करेंगे. पुनर्वित्त की चुकौती अवधि 7 वर्ष से अधिक नहीं होगी. नाबार्ड के पुनर्वित्त विभाग द्वारा ऋण सहायता की स्वीकृति के बाद प्राथमिक कृषि ऋण समितियां सम्बद्ध उपायों के लिए ऋण राशि के 10% की अनुदान सहायता प्राप्त कर सकते हैं. अनुदान राशि अधिकतम रु.2.00 लाख प्रति प्राथमिक कृषि ऋण समिति तक होगी.
ख. 63000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कंप्यूटरीकरण के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना
देश में 63,000 क्रियाशील प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कंप्यूटरीकरण के लिए नाबार्ड, भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय की केंद्रीय प्रायोजित परियोजना की कार्यान्वयक संस्था है. यह रु.2516 करोड़ की परियोजना 5 वर्षों में लागू की जाएगी. इसका उद्देश्य एक उद्यम संसाधन आयोजना - ईआरपी / प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के लिए राष्ट्र स्तरीय एकसमान सॉफ्टवेयर तैयार करना जो इन प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के लिए राष्ट्र स्तरीय डाटा प्रस्तुत कर सके, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के बहु-आयामी गतिविधियों, चाहे ऋण या ग़ैर ऋण हो, को शामिल करके और उन्हें व्यावसायिक बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्रों में परिवर्तित करें.
ग. ग्रामीण सहकारी बैंकों (बीडीपीआईसी) में व्यापार विविधिकरण और उत्पाद नवोन्मेष कक्ष
नाबार्ड ने वर्ष 2020 में नवप्रवर्तन और व्यापार विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए राज्य सहकारी बैंकों में व्यापार विविधता और उत्पाद नवप्रवर्तन कक्षों (बीडीपीआईसी) की स्थापना के लिए ग्रामीण सहकारी बैंकों को प्रेरित और प्रोत्साहित करने की योजना शुरू की. वर्ष 2021-22 के दौरान नाबार्ड ने सहकारिता विकास निधि से रु.577.5 लाख के कुल वित्तीय परिव्यय और रु.462 लाख की अनुदान सहायता वाले 7 प्रस्तावों को स्वीकृति दी है. संचयी सहायता क्रमश: रु. 1,732 लाख और रु. 1,386 लाख थी. वर्ष 2022-23 के दौरान संवितरण और संचयी संवितरण क्रमश; रु.114.99 लाख और रु.182.43 लाख थे.
घ. सहकारिता बैंक कार्मिक प्रशिक्षण वित्तीय सहायता योजना (एसओएफ़टीसीओबी)
सहकारिता विकास निधि का एक बड़ा अंश सहकारिता बैंक कार्मिक प्रशिक्षण वित्तीय सहायता (एसओएफ़टीसीओबी) के माध्यम से प्रशिक्षण संबंधी खर्च के लिए दिए गए. वर्ष 2020-21 और 2021-22 और 2022-23 के दौरान सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं (सीटीआई) ने 4,252 प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जिसमें सहकारिता क्षेत्र के विभिन्न स्तरों से एक लाख से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया. वर्ष 2020-21 के दौरान ऑनलाइन पद्धति से प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन का अनुमोदन किया गया था, ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी रहा. वर्ष 2022-23 के दौरान कई संस्थाओं ने दोनों ऑफ़-लाइन और ऑन-लाइन प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया.
च. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पुनर्पूंजीकरण
- लाभ / हानि और पेंशन देयता के परिशोधन के बाद पूंजी में अपेक्षित आंतरिक उपचय को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड हर वर्ष 9% सीआरएआर की अनिवार्यता का पालन न करने वाले क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण का आकलन करता है. नाबार्ड के आकलन के आधार पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित 9% के सीआरएआर के स्तर की प्राप्ति के लिए भारत सरकार, राज्य सरकार और प्रयोजक बैंक पुनर्पूंजीकरण सहायता प्रदान करते हैं. वित्तीय वर्ष 2021-22 और वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान दो वर्षों में इस प्रयोजन के लिए 22 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को रु.10,890 करोड़ की सहायता दी गई. यह राशि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और प्रयोजक बैंक क्रमश: 50%, 15% और 35% की दर से वहन करेंगे.
- वित्तीय वर्ष 20021-22 के दौरान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में पूंजी लगाने के पहले चरण का अनुमोदन करते हुए भारत सरकार ने बताया कि व्यवहार्यता योजना के अनुसार परिचालनात्मक और संचालन सुधारों में अच्छी प्रगति दर्शाने के बाद क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अगली 25% पुनर्पूंजीकरण सहायता 31 मार्च 2023 तक दी जाएगी.
- व्यवहार्यता योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की व्यापार विविधता, अनर्जक अस्ति प्रबंधन, युक्ति-संगत लागत बनाने, प्रौद्योगिकी अपनाने, कारपोरेट शासन प्रणाली, मानव संसाधन विकास आदि में व्यापक सुधारों को लागू करना है. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा प्रौद्योगिकी के अपनाने में, क्षमता विकास, उत्पाद नवप्रवर्तन आदि के क्षेत्र में केंद्रीय सेवाओं को उपलब्ध कराने में नाबार्ड एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी.
- पुनर्पूंजीकृत सहित सभी 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक प्रौद्योगिकी अपनाने सहित अपनी वित्तीय शक्ति और परिचालनात्मक दक्षता में सुधार लाने के लिए अपनी व्यवहार्यता योजनाएँ लागू कर रहे हैं. पुनर्पूंजीकरण का प्रभाव वित्तीय वर्ष 2021-22 और वित्तीय वर्ष 2022-23 के बैंकों के वित्तीय परिणामों से स्पष्ट होता है.
- नाबार्ड ने वित्तीय सेवाएँ विभाग, भारत सरकार के साथ मिल एक बाह्य संस्था के माध्यम से ‘व्यवहार्यता योजना’ के अधीन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के वित्तीय कार्यनिष्पादन का ऑनलाइन अनुप्रवर्तन के लिए संयुक्त रूप से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के लिए एक ‘डैश बोर्ड’ विकसित किया है.
छ. भारत सरकार का अल्पावधि मध्यवर्ती सहकारी बैंक पुनरुत्थान पैकेज – सहकारिता पुनरुत्थान और सुधार
ग्रामीण सहकारी संस्थाओं की समस्याओं का विश्लेषण करने और उनके पुनरुत्थान के लिए एक कार्य योजना का सुझाव देने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2004 में प्रो. ए वैद्यनाथन की अध्यक्षता में एक कार्य बल - टास्क फ़ोर्स की नियुक्ति की. कार्य बल की सिफ़ारिशों के आधार पर भारत सरकार ने जनवरी 2006 में एक पुनरुत्थान पैकेज की घोषणा की जिसमें निम्नलिखित का समावेश है:
- क. क़ानूनी और संस्थागत सुधार.
- ख. प्रबंधन की गुणवत्ता सुधारने के उपाय.
- ग. वित्तीय प्रणाली को स्वीकार्य वित्तीय स्थिति में लाने के लिए वित्तीय सहायता.
नाबार्ड को रु.13,596 करोड़ के वित्तीय परिव्यय के इस पैकेज की कार्यान्वयक संस्था के रूप में चयन किया गया जिसमें भारत सरकार का अंश रु.9,245.28 करोड़ था. 25 में से 23 राज्यों ने पुनरुत्थान पैकेज लागू किया. पैकेज के एक अंग के रूप में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों में समान लेखांकन प्रणाली (सीएएस) और प्रबंध सूचना प्रणाली लागू की गई.
ज. प्रगति और प्रबंध सूचना प्रणाली का अनुप्रवर्तन
विभाग ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा डाटा की प्रस्तुति के प्लैटफ़ार्म – एनश्युर के माध्यम से ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं की वित्तीय स्थिति का नियमित अनुप्रवर्तन करता है.
अन्य पहल :
क. सहकारिता विकास निधि (सीडीएफ़)
02 फरवरी 1993 को सम्पन्न निदेशक मण्डल की 69 वीं बैठक में लिए गए निर्णय के आधार पर राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 की धारा 45 के प्रावधानों के अधीन रु.10 करोड़ की आरंभिक निधि से सहकारिता विकास निधि की स्थापना की गई. इसके बाद, नाबार्ड के वार्षिक लाभ से इस निधि का संवर्धन किया जाता है. सहकारिता निधि के उद्देश्य निम्नानुसार है:
- i. संसाधनों के संग्रहण में चयनित आधार पर आधार स्तरीय सहकारी ऋण संस्थाओं – प्राथमिक कृषि ऋण समितियों और कमज़ोर ग्रामीण सहकारी बैंकों के प्रयासों के लिए सहायता प्रदान करना.
- ii. बेहतर कार्य निष्पादन और व्यवहार्यता में सुधार लाने के लिए सहकारी ऋण संस्थाओं में प्रणालियों को लागू करना और प्रक्रियाओं में सुधार करना.
- iii. बेहतर प्रबंध सूचना प्रणाली (एमआईएस) का विकास करना.
- iv. कार्य क्षमता में सुधार लाने के लिए विशेष अध्ययनों का आयोजन.
वर्ष 2022-23 के दौरान दोनों अल्पावधि तथा दीर्घावधि ऋण संरचना के लिए विभिन्न प्रसारात्मक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए सहकारिता विकास निधि के अधीन रु.33.63 करोड़ (31 मार्च 2023 की स्थिति) संवितरित किए गए.
ख. राष्ट्रीय सहकारिता नीति पर समिति
श्री सुरेश प्रभाकर प्रभु की अध्यक्षता में नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति तैयार करने के लिए 02 सितंबर 2022 को एक राष्ट्र स्तरीय समिति का गठन किया गया जिसमें सहकारी क्षेत्र के विशेषज्ञ, राष्ट्र / राज्य / ज़िला / प्राथमिक स्तरीय सहकारी समितियों के प्रतिनिधियों, राज्यों / संघ शासित प्रदेशों से सहकारिता सचिवों और सहकारी समितियों के निबंधकों, केंद्रीय मंत्रालयों / विभाग के अधिकारियों, अध्यक्ष, नाबार्ड को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है.
‘सहकार से समृद्धि’ की परिकल्पना को साकार करने, देश में सहकारी आंदोलन को सुदृढ़ बनाने, सहकारिता के सिद्धांतों के अनुरूप और सहकारिता आधारित आर्थिक विकास के मॉडल को बनाने के लिए नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति प्रलेख का प्रारूप तैयार करने का दायित्व समिति को सौंपा गया है.
ग. प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के लिए मॉडल उप नियम
भारत सरकार ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के लिए मॉडल उप नियम तैयार किए और राज्यों में संबंधित राज्य सहकारी अधिनियमों के अनुसार अपनाए जाने के लिए राज्यों में वितरित किए गए हैं ताकि वे डेरी , मत्स्यपालन व्यवसाय, गोदामों का निर्माण, एलपीजी / पेट्रोल / हरित ऊर्जा वितरण एजेंसी, बैंकिंग प्रतिनिधि (करस्पोंड़ंट), सीएससी आदि जैसी 25 से अधिक व्यापारिक गतिविधियों को अपना सके. इसे बहुत अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है और देश भर में अपना वित्तीय पुनरुत्थान सुनिश्चित करने के लिए बड़ी संख्या में प्राथमिक कृषि ऋण समितियां इसे अपना रहे हैं.
घ. आम सेवा केंद्र (सीएससी) के रूप में प्राथमिक कृषि ऋण समितियां
सहकारिता मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, नाबार्ड और सीएससी ई-गवर्नन्स सर्विसेस इंडिया लिमिटेड के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ताकि प्राथमिक कृषि ऋण समितियां अपनी व्यवहार्यता में सुधार लाने के लिए आम सेवा केन्द्रों द्वारा प्रदत्त सेवाओं को उपलब्ध करवा सके, ग्राम स्तर पर ई-सेवाएँ प्रदान कर सके और रोज़गार पैदा किया जा सके.
इस परियोजना के अधीन प्रशिक्षण कार्यक्रम को अपनाया गया है और नाबार्ड इसे सक्रिय रूप से सहायता प्रदान कर रहा है.
च. राष्ट्रीय सहकारिता डाटाबेस
सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार ने देश के सहकारिता के वास्तविक और अद्यतन डाटा रिपोजीटरी तैयार करने का कार्य शुरू हो गया है.
छ. देश में सहकारिता अभियान सुदृढ़ बनाने की केंद्रीय योजना
देश में 1.6 लाख पंचायत हैं जिनमें प्राथमिक कृषि ऋण समितियां नहीं हैं और 2 लाख पंचायत हैं जिनमें कोई सहकारी दुग्ध समिति नहीं है.
देश में सहकारी आंदोलन को सुदृढ़ बनाने और इसे आधार स्तर तक ले जाने के लिए 15 फरवरी 2023 को केंद्रीय कैबिनेट ने एक केंद्रीय योजना का अनुमोदन किया है. इस योजना का लक्ष्य उन पंचायतों में एक व्यवहार्य प्राथमिक कृषि ऋण समिति की स्थापना करना जिनमें यह समिति नहीं है, इसी प्रकार एक व्यवहार्य डेरी सहकारी समिति तथा प्रत्येक तटवर्ती पंचायत / गाँव जिसमें बड़े जल स्रोत हो उनमें एक व्यवहार्य मत्स्य व्यवसाय सहकारी समिति की स्थापना करना और मत्स्यव्यवसाय, पशुपालन और डेरी मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के अभिसरण तथा ‘व्होल-ऑफ-गवर्नमेंट’ दृष्टिकोण को अपना कर मौजूदा प्राथमिक कृषि ऋण समितियों / डेरी / मत्यव्यवसाय सहकारी समितियों को सुदृढ़ किया जाएगा.
आरंभ में अगले पहले पाँच वर्षों में 2 लाख प्राथमिक कृषि ऋण समितियों / डेरी / मत्स्यव्यवसाय सहकारी समितियों की स्थापना की जाएगी. इस परियोजना के कार्यान्वयन की कार्य योजना नाबार्ड, राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और राष्ट्रीय मत्स्यव्यवसाय विकास मण्डल (एनएफ़डीबी) तैयार करेंगे.
कार्य योजना के सुचारू कार्यान्वयन के लिए अभिसरण के लिए चिह्नित योजनाओं के दिशानिर्देशों में उचित संशोधन सहित आवश्यक कदम उठाने के लिए गृह और सहकारिता मंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च अंतर मंत्रालय समिति (आईएमसी) का गठन किया गया है जिसमें कृषि और किसान कल्याण मंत्री; मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री; संबंधित सचिव; अध्यक्ष, नाबार्ड, अध्यक्ष, राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड और मुख्य कार्यपालक, राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है. इस संबंध में ध्यान केन्द्रित करने और कार्य योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर समितियों का गठन किया गया है.
ज. कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों में “सुधार, पुनर्संरचना और नवप्रवर्तन” पर अध्ययन
सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार ने नाबार्ड से “कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों में सुधार, पुनरसंरचना और नवप्रवर्तन” पर नाबार्ड से अध्ययन करने का आग्रह किया है. नाबार्ड ने नैबकाँस को अध्ययन का दायित्व सौंपा है और उसने यह कार्य शुरू किया गया है.
झ. सहकारिता व्यावसायिक उत्कृष्टता केंद्र – सेंटर फॉर प्रोफ़ेशनल एक्सेलेंस इन कॉपरेटिव्ज़ (सी-पैक)
अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना (एसटीसीसीएस) में सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं को बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं के उत्कृष्ट प्रशिक्षण देने में सहयोग प्रदान करने के लिए नाबार्ड ने वर्ष 2009 में जीआईज़ेड के सहयोग से नाबार्ड ने बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान, लखनऊ में सहकारिता व्यावसायिक उत्कृष्टता केंद्र – सेंटर फॉर प्रोफ़ेशनल एक्सेलेंस इन कॉपरेटिव्ज़ – सी-पैक की स्थापना की. वर्ष 2022-23 के दौरान सी-पैक ने प्रमाणन पाठ्यक्रम परीक्षाओं का आयोजन किया, संस्थागत सदस्यों में 87 और व्यक्तिगत सदस्यों में 2,289 की वृद्धि हुई जिससे कुल सदस्यता बढ़कर 12,400 हो गई इसमें 49 सहकारी प्रशिक्षण केंद्र, 30 राज्य सहकारी बैंक, 276 ज़िला मध्यवर्ती सहकारी बैंक, 01 सहकारी समितियों के निबंधक, 01 संघ – यूनियन, 02 राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, 5,685 प्राथमिक कृषि ऋण संस्थाएं और 6,356 व्यक्ति हैं.
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श्री एस के नन्दा
प्रभारी अधिकारी
संस्था विकास विभाग,
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