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क्या आप जानते थे?
भारत – जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देशों में भारत सातवें स्थान पर है (वैश्विक जलवायु जोखिम संकेतक 2021) और उसमें भी ग्रामीण निर्धनों को सर्वाधिक जोखिम संभावित है क्योंकि वे अपने जीवनयापन के लिए वानिकी, मात्स्यिकी और कृषि सहित प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं.
जलवायु परिवर्तन भारत के प्राकृतिक संसाधनों की वितरण-शैली को बदल सकता है और लोगों की आजीविका को दुष्प्रभावित कर सकता है. अनेक मानव गतिविधियों और आबादी में वृद्धि के कारण भारत के प्राकृतिक संसाधन पहले ही भारी दबाव में हैं.
जलवायु परिवर्तन लघु और सीमांत किसानों के लिए “जोखिम को बहु-गुणित करने वाला” कारक है जो उनके विद्यमान सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और पर्यावरणीय दबावों को बदतर स्थिति में ला देता है.
कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
तापक्रम में वृद्धि के कारण फसल की उपज कम होने और खर-पतवार और कीट-पतंगों में वृद्धि की प्रवृत्ति होती है.
तापक्रम में वृद्धि और पानी की उपलब्धता में परिवर्तन के कारण जलवायु परिवर्तन में सभी कृषि-पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में सिंचित फसलों की उपज घटाने की क्षमता होती है.
वर्षा में परिवर्तनीयता और वर्षा के दिनों की संख्या में कमी का सर्वाधिक प्रभाव वर्षा-आधारित कृषि पर होगा.
जलवायु-अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) परियोजना के भाग के रूप में किए गए विश्लेषण के अनुसार जलवायु परिवर्तन से फसलों की उपज के घटने की आशंका है, विशेष रूप से चावल, गेहूँ और मक्के की फसलों के.
वर्षा-आधारित चावल की उपज में 2050 और 2080 में बहुत थोड़ी (<2.5%) कमी आएगी जबकि सिंचित चावल की उपज में 2050 में 7% और 2080 में 10% की कमी आएगी.
गेहूँ की उपज में 2100 तक 6-25% कमी आने की संभावना है, जबकि मक्के की उपज में 18-23% कमी आ सकती है.