दीर्घावधि ऋण

नाबार्ड अनुमोदित वित्तीय संस्थाओं को, कृषि और अनुषंगी गतिविधियों और कृषीतर क्षेत्र आदि की निवेश गतिविधियों के लिए पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराने के लिए उनके अपने संसाधनों की अनुपूर्ति हेतु नाबार्ड अधिनियम, 1981 की धारा 25(i)(क) के अंतर्गत दीर्घावधि पुनर्वित्त उपलब्ध कराता रहा है.

1. उद्देश्य: नाबार्ड के दीर्घावधि पुनर्वित्त के उद्देश्य निम्नानुसार हैं:

  • कृषि और अनुषंगी गतिविधियों में पूँजी निर्माण को सहयोग देना, और इस प्रकार कृषि, पशुपालन, मात्स्यिकी, वानिकी आदि क्षेत्रों की वृद्धि का संवर्धन करना.
  • ऋण प्रवाह को भारत सरकार और नाबार्ड की बल क्षेत्र गतिविधियों की दिशा में ले जाना.
  • जेएलजी और एसएचजी की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करना.
  • कृषीतर क्षेत्र गतिविधियों (एमएसएमई, ग्रामीण आवासन, सीवी) के लिए सहयोग, और इस प्रकार ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वैकल्पिक रोजगार के अवसरों का संवर्धन.
  • जलवायु अनुकूलन और शमन परियोजनाओं को सहयोग.
  • भारत सरकार की जिन ऋण-सहबद्ध पूँजी सब्सिडी योजनाओं की सब्सिडी को नाबार्ड के माध्यम से चैनलाइज़ किया जाता है, उनके लिए पुनर्वित्त सहयोग.

I. पात्र संस्थाएँ

पुनर्वित्त के लिए पात्र संस्थाएँ निम्नानुसार हैं:

  • राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
  • राज्य सहकारी बैंक
  • जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक
  • वाणिज्यिक बैंक
  • राज्य कृषि विकास वित्त कम्पनियाँ
  • अनुसूचित प्राथमिक शहरी सहकारी बैंक
  • उत्तर-पूर्व विकास वित्त निगम
  • गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ/ गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनी – सूक्ष्म वित्त संस्था
  • लघु वित्त बैंक

प्रयोजन:

क. कृषि क्षेत्र:

  • i. भूमि विकास
  • ii. लघु और सूक्ष्म सिंचाई, टपक सिंचाई
  • iii. जल बचत और जल संरक्षण उपकरण
  • iv. डेयरी
  • v. पोल्ट्री
  • vi. मधुमक्खी पालन
  • vii. रेशमपालन
  • viii. मात्स्यिकी
  • ix. पशुपालन
  • x. स्वयं सहायता समूहों/ संयुक्त देयता समूहों/ रायतु मित्र समूहों को ऋण
  • xi. शुष्क भूमि फार्मिंग
  • xii. ठेका खेती
  • xiii. बागान और बागबानी
  • xiv. कृषि-वानिकी
  • xv. बीज उत्पादन
  • xvi. ऊतक संवर्धन पौध उत्पादन
  • xvii. कृषि और अनुषंगी गतिविधियों में सीधे संलग्न कॉर्पोरेट किसानों, एकल किसानों के कृषक उत्पादक संगठनों/ कंपनियों, किसानों की साझेदारी फर्मों और सहकारी संस्थाओं को ऋण, प्रति उधारकर्ता कुल ₹ 2 करोड़ की समग्र सीमा तक
  • xviii. कृषि उपकरण
  • xix. नियंत्रित स्थितियों अर्थात् पॉलीहाउस/ ग्रीन हाउस में उच्च मूल्य/ विदेशी सब्जियों, कट फ्लावर का उत्पादन
  • xx. मशरूम जैसे उच्च तकनीक वाले निर्यातोन्मुख उत्पादन, ऊतक संवर्धन प्रयोगशाला, प्रिसीज़न फार्मिंग जिससे फलों और सब्जियों की उत्पादकता में वृद्धि होती है.

ख. अन्य गतिविधियाँ

  • (i) विनिर्माण और सेवा, दोनो क्षेत्रों के एमएसएमई जिनसे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन होता हो.
  • (ii) कृषि-क्लीनिक और कृष-व्यवसाय केंद्र
  • (iii) एमएसएमई, कृषि और अनुषंगी सेवाओं में संलग्न स्टार्ट-अप, भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की परिभाषा के अनुसार
  • (iv) ग्रामीण आवासन
  • (v) वाणिज्यिक वेहिकल्स
  • (vi) कृषि-प्रसंस्करण
  • (vii) जल संरक्षण और वाटरशेड विकास
  • (viii) कृषि विपणन आधारभूत संरचना (शीत भंडार, भाण्डागार, गोदाम, मार्किट यार्ड, साइलो सहित) चाहे वे कहीं भी अवस्थित हों.
  • (ix) गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत
  • (x) पहले ही कार्यान्वित किए जा चुके वाटरशेड तथा जनजातीय विकास कार्यक्रमों के क्षेत्रों में वित्तपोषण.
  • (xi) पौध ऊतक संवर्धन और कृषि-जैव प्रौद्योगिकी, बीज-उत्पादन, जैव कीटनाशकों, जैव उर्वरकों और कृमि-कम्पोस्ट का उत्पादन.
  • (xii) पैक्स, कृषक सेवा सोसायटी (एफएसएस) और बृहदाकार आदिवासी बहु-उद्देशीय सोसायटी (लैम्प्स) को आगे कृषि हेतु ऋण देने के लिए बैंक ऋण.
  • (xiii) आगे कृषि क्षेत्र को ऋण देने के लिए एनबीएफसी-एमएफआई को बैंकों द्वारा मंजूर ऋण
  • (xiv) केवीआई (खादी ग्रामोद्योग)
  • (xv) ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय, स्वास्थ्य सुविधा, पेय जल, स्वच्छता और अन्य सामाजिक आधारभूत सुविधाएँ/ संरचनाएँ
  • (xvi) नवीकरणीय ऊर्जा जैसे सौर आधारित बिजली उत्पादन, बायोमास आधारित बिजली उत्पादन, पवन चक्की, सूक्ष्म जल विद्युत् संयंत्र, और गैर-पारंपरिक ऊर्जा पर आधारित जन सेवाएँ, जैसे गलियों की प्रकाश व्यवस्था और दूरस्थ गाँवों का विद्युतीकरण
  • (xvii) एकल सौर कृषि पम्पों को इंस्टाल करना और ग्रिड से जुड़े कृषि पम्पों को सौर ऊर्जा कृषि पम्पों में बदलना; ऊसर/ परती भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाना या किसान के स्वामित्व वाली जमीन पर स्टिल्ट बनाकर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाना
  • (xviii) जैव ईंधन के उत्पादन के लिए तेल निकालने/ तेल प्रसंस्करण इकाइयों और उसके भण्डारण तथा वितरण के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण और साथ ही कंप्रेस्ड बायोगैस संयंत्रों की स्थापना के लिए उद्यमियों को ऋण.
  • (xix) कस्टम हायरिंग इकाइयाँ जो व्यक्तियों, संस्थाओं या संगठनों द्वारा प्रबंधित हों और जो ट्रैक्टर, बुलडोज़र, कूप खनन उपकरण, थ्रेशर, कम्बाइन आदि की फ्लीट रखते हों, और जो संविदा के आधार पर किसानों के लिए फ़ार्म का काम करते हों.
  • (xx) कृषक साथी योजना
  • (xxi) क्षेत्र विकास योजनाएँ
  • (xxii) विकेन्द्रीकृत क्षेत्र के कारीगरों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादों के विपणन में सहयोग करने वाली संस्थाओं को ऋण. शहरी सहकारी बैंकों के मामले में “संस्थाओं” अभिव्यक्ति में वे संस्थाएँ शामिल नहीं होंगी जिन्हें ऋण देने की अनुमति भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों/ उनके कामकाज को संचालित करने वाली विधिक संरचना के अंतर्गत नहीं है.
  • (xxiii) खाद्य प्रसंस्करण के अंतर्गत अनुमत गतिविधियाँ
  • ऐसी अन्य गतिविधियों को भी शामिल किया जा सकता है जो ऊपर उल्लिखित नहीं हैं लेकिन जो कृषि और ग्रामीण विकास का संवर्धन करती हैं.

ऋण अवधि

ऋण की अधिकतम अवधि 15 वर्ष तक है.
पुनर्वित्त खिड़कियाँ

क. स्वचालित पुनर्वित्त सुविधा (एआरएफ):

स्वचालित पुनर्वित्त सुविधा (एआरएफ) बैंकों को मंजूरी-पूर्व औपचारिकताओं की विस्तृत कार्यविधियों से गुजरे बिना नाबार्ड से वित्तीय निभाव प्राप्त करने में समर्थ बनाती है. बैंकों से अपेक्षित है कि वे अपने स्तर पर प्रस्तावों का मूल्यांकन करें और उधारकर्ताओं का वित्तपोषण करें. बैंक पुनर्वित्त के दावों के विभिन्न प्रयोजनों और संवितरित ऋण राशि का विवरण देते हुए घोषणा (आहरण आवेदन) के आधार पर नाबार्ड से पुनर्वित्त का दावा कर सकते हैं. ऐसे मामलों में नाबार्ड साथ ही साथ पुनर्वित्त की मंजूरी और संवितरण का कार्य करता है.

स्वचालित पुनर्वित्त सुविधा कृषि क्षेत्र और कृषीतर क्षेत्र के अंतर्गत सभी प्रकार की परियोजनाओं के लिए पुनर्वित्त की प्रमात्रा, बैंक ऋण या कुल वित्तीय परिव्यय पर बिना किसी उच्चतम सीमा के प्रदान की जाती है.

ख. मंजूरी-पूर्व कार्यविधि:

यदि बैंक मंजूरी-पूर्व कार्यविधि के अंतर्गत पुनर्वित्त लेना चाहते हैं, तो उन्हें नाबार्ड के अनुमोदन के लिए परियोजनाएँ प्रस्तुत करनी होंगी. मंजूरी के पूर्व नाबार्ड यह निर्धारित करने के लिए परियोजनाओं का मूल्यांकन करेगा कि वे तकनीकी दृष्टि से साध्य, वित्तीय दृष्टि से व्यवहार्य और बैंक-योग्य हैं.

पुनर्वित्त की सीमा

निवेश के प्रयोजन, अवस्थिति और पुनर्वित्त के लिए आवेदन करने वाली एजेंसी के आधार पर पात्र बैंक ऋण का 90/ 95% पुनर्वित्त दिया जाएगा.

पुनर्वित्त के मानदंड

  • परियोजना की तकनीकी साध्यता
  • वित्तीय व्यवहार्यता और बैंक-योग्यता
  • ऋण के पर्यवेक्षण के लिए संगठनात्मक व्यवस्थाएँ
  • वित्तीय संस्थाओं के लिए सीआरएआर मानदंड
  • वित्तीय संस्थाओं के लिए निवल एनपीए मानदंड
  • वित्तीय संस्थाओं के लिए निवल लाभ मानदंड

अंतिम उधारकर्ता

यद्यपि पुनर्वित्त राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों/ राज्य सहकारी बैंकों/ जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों/ वाणिज्यिक बैंकों/ लघु वित्त बैंकों/ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों/ कृषि विकास वित्त कंपनियों/ प्राथमिक शहरी सहकारी बैंकों/ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी)/ एनबीएफसी-सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को पुनर्वित्त उपलब्ध कराया जाता है लेकिन निवेश वित्त के अंतिम उधारकर्ता के रूप में व्यक्ति, मालिकाना/ साझेदारी कंसर्न, कम्पनियाँ, राज्य के स्वामित्व वाले निगम या सहकारी सोसायटियाँ, स्वयं सहायता समूह, संयुक्त देयता समूह, कृषक उत्पादक संगठन आदि हो सकते हैं.

विशेष पुनर्वित्त योजनाएँ तैयार करना

ग्रामीण प्रवासन की समस्या के निवारण के लिए और कोविड के बाद के काल में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को गति देने के लिए नाबार्ड ने विशेष पुनर्वित्त योजनाएँ शुरू कीं. इसके अलावा, नाबार्ड ने साफ़ पानी, स्वच्छता और अच्छा स्वास्थ्य उपलब्ध कराने के लिए जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य पर एक विशेष पुनर्वित्त योजना शुरू की ताकि संक्रामक रोग के प्रसार के दौरान मानव स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके.

1. बहु-सेवा केंद्र (एमएससी) के रूप में पैक्स के लिए विशेष दीर्घावधि पुनर्वित्त योजना

इस योजना का उद्देश्य अच्छी गुणवत्ता वाली आधारभूत संरचना (पूँजी अस्तियों) का निर्माण करने और सदस्यों की आवश्यकता के अनुसार व्यवसाय पोर्टफोलियो को बढ़ाने के लिए पैक्स की सहायता करने हेतु राज्य सहकारी बैंकों को 3% की दर पर रियायती पुनर्वित्त उपलब्ध कराकर वित्तीय वर्ष 2020-21 से शुरू कर तीन वर्षों में सभी सम्भावना-युक्त पैक्स को बहु-सेवा केंद्र के रूप में विकसित करना है.
नाबार्ड की परिकल्पना है कि इस ऋण सीमा के अंतर्गत तीन वर्ष की अवधि में 35,000 पैक्स का रूपांतरण किया जाए जिसमें से पहले वर्ष अर्थात् वित्तीय वर्ष 21 में 5,000 पैक्स का, वित्तीय वर्ष 22 और 23 में से प्रत्येक वर्ष में 15,000 पैक्स का रूपांतरण बहु-सेवा केंद्र के रूप में किया जाए. वर्ष 2020-21 के दौरान इस व्यवस्था के लिए रु.5,000 करोड़ की राशि अलग रखी गई है. पैक्स पर प्रभारित की जाने वाली अंतिम ब्याज दर से 1% से अधिक नहीं होगी और ब्याज को राज्य सहकारी बैंक और मध्यवर्ती सहकारी बैंक द्वारा परस्पर सहमत शर्तों पर साझा किया जाएगा. पुनर्वित्त की चुकौती अवधि 7 वर्ष तक की होगी.

2. सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियों के लिए विशेष दीर्घावधि पुनर्वित्त योजना

इस योजना का उद्देश्य बैंकों को सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को ऋण देने और ग्रामीण युवाओं और साथ ही कोविड-19 महामारी के बाद शहरों से वापस गाँवों की ओर लौटने वाले लोगों के लिए संधारणीय आजीविका और रोजगार के अवसर सृजित करना है.
योजना में यह भी अवधारित है कि विद्यमान सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का आधुनिकीकरण किया जाए और उनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाई जाए और उन्हें ग्रामीण क्षेत्र के औपचारिक सेक्टर में ले जाना सुनिश्चित किया जाए. यह पुनर्वित्त योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा हाल ही में शुरू की गई “प्रधान मंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण योजना” को भी गति देगी जिसके अंतर्गत लगभग रु. 25,000 करोड़ के निवेश की उम्मीद है. इसके तहत पात्र वित्तीय संस्थाओं अर्थात् वाणिज्यिक बैंकों, लघु वित्त बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और नाबार्ड की सहायक संस्थाओं को 4% की दर पर रियायती पुनर्वित्त उपलब्ध है.

3. जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य (वाश) के लिए योजनाबद्ध पुनर्वित्त

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का उद्देश्य है सबको स्वच्छ जल और अन्य प्रकार की स्वच्छता उपलब्ध कराना. कोई महामारी फैलने के दौरान यह अनिवार्य है. इसलिए नाबार्ड ने निर्णय लिया कि सभी पात्र बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं को रियायती पुनर्वित्त सहायता दी जाए ताकि वे वाश से जुड़ी गतिविधियों में लाभार्थियों के लिए संस्थागत ऋण को और गहराई में ले जाने में समर्थ हो सकें. इस योजना के अंतर्गत वित्तपोषण विभिन्न श्रेणियों की वित्तीय संस्थाओं के लिए रियायती ब्याज दर पर किया जाएगा.

4. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों और नाबार्ड की सहायक संस्थाओं के लिए कृषि आधारभूत संरचना निधि (एआईएफ) के अंतर्गत वित्तपोषण हेतु विशेष पुनर्वित्त योजना

ग्रामीण वित्तीय संस्थाएँ एआईएफ के अंतर्गत परियोजनाओं के निधीयन और साथ ही एआईएफ में शामिल पात्र लाभार्थियों के निधीयन के लिए प्रोत्साहित हों, इसके लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों और नाबार्ड की सहायक संस्थाओं के लिए आल्को द्वारा समय-समय पर निर्णीत रियायती ब्याज दर के साथ 7 वर्ष की अवधि वाली एक पुनर्वित्त योजना तैयार की गई है.

5. दीनदयाल अन्त्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई – एनआरएलएम) – योजनाबद्ध ऋणीकरण 2022-23 के लिए पुनर्वित्त योजना

नाबार्ड भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा परिचालित राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और राज्य सहकारी बैंकों द्वारा सभी महिला एसएचजी को प्रदत्त ऋणों के समक्ष इन बैंकों को रियायती पुनर्वित्त उपलब्ध कराएगा.

क्र.सं. पुनर्वित्त के निबंधन और शर्तें क्षेत्र पुनर्वित्त की ब्याज दर
1 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक/ सहकारी बैंक सभी महिला एसएचजी को प्रति एसएचजी रु.3 लाख तक के ऋण 7% की ब्याज दर पर देंगे. ii. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक/ सहकारी बैंक सभी महिला एसएचजी को प्रति एसएचजी रु.3 लाख से अधिक रु.5 लाख तक के ऋण एक वर्ष के एमसीएलआर या किसी अन्य न्यूनतम सीमा या 10% में से जो भी कम हो, उस ब्याज दर पर देंगे. पूर्वोत्तर राज्यों, राष्ट्रपति शासित राज्यों (जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, पुदुचेरी, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप) और हिमालयीन राज्यों (उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश) को छोड़कर सभी क्षेत्र 4%
2 पूर्वोत्तर राज्य, राष्ट्रपति शासित राज्य (जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, पुदुचेरी, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप) और हिमालयीन राज्य (उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश) 3%