बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35(6) नाबार्ड को यह शक्ति देती है कि वह राज्य सहकारी (रास) बैंकों, जिला मध्यवर्ती सहकारी (जिमस) बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण (क्षेग्रा) बैंकों का निरीक्षण करे. इसके अलावा, नाबार्ड स्वैच्छिक आधार पर राज्य स्तरीय सहकारी संस्थाओं, जैसे राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास (रासकृग्रावि) बैंकों, शीर्ष बुनकर समितियों, विपणन महासंघों आदि का निरीक्षण भी करता है.
पर्यवेक्षण के उद्देश्य
- वर्तमान और भविष्यगत जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण करना;
- यह सुनिश्चित करना कि इन बैंकों द्वारा संचालित व्यवसाय संगत अधिनियमों/ नियमावलियों/ विनियमों/ उप-नियमों के उपबंधों के अनुरूप हैं;
- यह सुनिश्चित करना कि नाबार्ड/ भारतीय रिज़र्व बैंक/ सरकार द्वारा तैयार और जारी किए गए नियमों, दिशानिर्देशों आदि का पालन किया जाता है;
- बैंकों की वित्तीय सुदृढ़ता की जाँच करना; और
- संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण के तरीके और साधन सुझाना जिससे वे ग्रामीण ऋण की व्याप्ति में अधिक दक्षतापूर्ण भूमिका निभा सकें.