राज्य सहकारी बैंकों और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों के लिए जो ऋण प्राधिकार योजना (सीएएस) 1974 से परिचालन में थी, उसके स्थान पर अप्रैल 2000 से ऋण अनुप्रवर्तन व्यवस्था (सीएमए) लागू की गई.
सीएमए के अंतर्गत, सहकारी बैंकों से यह अपेक्षित है कि वे ऋण मंजूरी प्रस्तावों पर भारतीय रिज़र्व बैंक/ नाबार्ड द्वारा समय-समय पर जारी नीतिगत दिशानिर्देशों की स्थूल संरचना के भीतर रहते हुए और एक्सपोज़र तथा अन्य विवेकपूर्ण बैंकिंग मानदंडों के अनुरूप विचार करें. एक्सपोज़र मानदंड बैंक की विनियामकीय रेटिंग श्रेणी के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं – व्यक्तिशः एक्सपोज़र निश्चित राशि के रूप में; इकाई-वार एक्सपोज़र पूँजी निधियों के प्रतिशत के रूप में; और सेक्टर-वार एक्सपोज़र उधार देने योग्य आतंरिक संसाधनों के प्रतिशत के रूप में. इसके अलावा, सहकारी बैंकों को स्वयं को संतुष्ट करना होगा कि प्रस्ताव तकनीकी दृष्टि से साध्य और वित्तीय दृष्टि से व्यवहार्य है; उधारकर्ता ऋण ग्रहण करने के लिए योग्य है; मार्जिन, प्रतिभूति आदि पर्याप्त हैं, इत्यादि. तथापि, नाबार्ड जन वितरण प्रणाली और केंद्र सरकार/ राज्य सरकारों के अन्य क्रय/ अधिप्रापण परिचालनों और राज्य सहकारी बैंकों/ जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों द्वारा अधिशेष (सरप्लस) निधियों के नियोजन के संबंध में आवश्यकतानुसार अनुदेश जारी करना और अनुमोदन संप्रेषित करना जारी रखेगा.