जलवायु परिवर्तन पर नाबार्ड की प्रायोगिक परियोजनाएँ

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में 3.5 मिलियन यूएस$ की निधि सहायता से शुरू की गई जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (सीसीए) परियोजना का उद्देश्य ऐसी जानकारियों, रणनीतियों और पद्धतियों का विकास करना है जो कमजोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने और उन्हें शीघ्र संभावित प्रभावों के अनुकूल ढलने में समर्थ बनाएँ. मानसून के आने और जाने में होने वाले विलम्ब, तापमान में परिवर्तन (खास तौर पर जाड़े के मौसम में) और बेमौसम वर्षा के रूप में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं. इन प्रतिकूल प्रभावों के समाधान के लिए समुदाय-आधारित अनुकूलन पद्धतियों की सफलता को प्रदर्शित करने वाली परियोजनाएँ विकसित करना प्रमुख चुनौती है. महाराष्ट्र में एसडीसी के साथ मिलकर कार्यान्वित की जा रही सीसीए परियोजना का उद्देश्य वस्तुत: ऐसे मॉडल/ पायलट तैयार करना है जिन्हें दोहराया जा सके और बड़े पैमाने पर विस्तार दिया जा सके.

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वाटरशेड परियोजनाओं को जलवायु रोधी बनाना: जलवायु परिवर्तन के कारण सार्वजनिक कार्यक्रमों, निवेशों या कृषि मूल्य शृंखला को जोखिम है. नाबार्ड इन जोखिमों का सामना करने के लिए ज़ीआईजेड के साथ मिलकर तमिलनाडु और राजस्थान में वाटरशेडों (प्रत्येक राज्य में दो-दो वाटरशेड) को जलवायु रोधी बनाने की प्रायोगिक परियोजनाएँ चला रहा है. इसके अलावा, जलवायु रोधी बनाने के क्रम में, निवेशों/ सहयोगात्मक हस्तक्षेपों के माध्यम से जलवायु जोखिम को कम करने और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए समुदायों और संस्थाओं की क्षमता बढ़ाने के अवसरों की तलाश भी की जाएगी.

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