Towards Inclusive India

समावेशी भारत की ओर

समावेशी भारत का अर्थ है ऐसा भारत जो अपने भौगोलिक क्षेत्र के सभी निवासियों को आयत्त करता है. इस संकल्पना में लोग देश के विकास की परिधि से बाहर नहीं होते और पूरा देश हमारे संविधान में स्थापित सिद्धांतों से संचालित होता है. लेकिन हम इस बात को जानते हैं कि ग्रामीण आबादी कितनी कमजोर स्थिति में है. हम सभी नाबार्ड-कर्मी यह विश्वासपूर्वक मानते हैं कि ग्रामीण भारत के प्रत्येक निवासी में यह क्षमता है कि वह भारत की संवृद्धि और विकास में योगदान करने में समर्थ है. आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें सशक्त बनाया जाए और हम अपने बहुविध प्रयासों के माध्यम से उन्हें समर्थ बनाने का प्रयास कर रहे हैं, और इस सिलसिले में हम वित्तीय समावेशन, कौशल विकास, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से महिला सशक्तीकरण, संयुक्त देयता समूह (जेएलजी), सूक्ष्म उद्यम विकास कार्यक्रमों (एमईडीपी), आजीविका और उद्यम विकास कार्यक्रमों (एलईडीपी), क्लस्टर विकास आदि पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं.

हमारे प्रयासों को निकट से देखें:

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सारी बाधाओं के बावजूद

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की सुरम्य किन्तु सुदूर वादियों के लोगों के संघर्ष की कहानी, जिनके पास आजीविका के सीमित विकल्प थे, नेटवर्क कनेक्टिविटी नहीं थी और जिनका पूरा अर्थतंत्र बाहर से आने वाले पैसे और पेंशन पर निर्भर था, और फिर कैसे समग्रतामूलक वित्तीय समावेशन की हमारी प्रायोगिक परियोजना ने उनके जीवन पर मापने योग्य प्रभाव डाला और उन्हें अनेक वित्तीय उत्पाद उपलब्ध हुए.

कहानी

बिहार से महिला सशक्तीकरण की सफलता की एक चमचमाती कहानी

बिहार के दरभंगा जिले में पूर्णतः महिलाओं के स्वामित्व वाली और उन्हीं के द्वारा संचालित कमला फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी ने आजीविका गतिविधि के रूप में बकरापालन के संवर्धन के माध्यम से इलाके का परिदृश्य ही बदल दिया. बिहार के ग्रामीण जिले दरभंगा में महिला सशक्तीकरण की सफलता की एक नई चमचमाती कहानी

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नेल्लोर में फूलों की खेती करने वाले किसान

यह आन्ध्र प्रदेश में नेल्लोर के प्रगति युवा केन्द्रम एफपीओ की प्रेरक कहानी है जो फूलों की खेती करने वाले किसानों को उद्यमी में रूपांतरित कर रहा है. अन्य चुनौतियों के साथ-साथ, संगठित विपणन प्रणाली के अभाव और ऋण की अनुपलब्धता के कारण किसानों की आजीविका खतरे में थी. नाबार्ड की एफपीओ संवर्धन योजना की सहायता से इन किसानों के जीवन में अच्छे दिनों के फूल खिलने लगे हैं.

कहानी

झारखण्ड की एक आदिम जनजाति के अंधकारमय जीवन में सूरज की ऊर्जा का उजाला

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के छोटे से गाँव में सौर प्रकाश की व्यवस्था शुरू करने और घर के पीछे सब्जी की खेती को बढ़ावा देने की प्रायोगिक परियोजना जीवन और स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार का रास्ता खोलती है.

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बदलाव की बयार

हरियाणा के मेवात जिले में नाबार्ड द्वारा समर्थित वित्तीय समावेशन प्रयासों पर एक फिल्म

कहानी

बेहतर कल का ताना-बाना

कृषीतर उत्पादक संगठन (ओएफपीओ) के रूप में साथ आने से सहर कालीन कारीगरों की आमदनी तीनगुना बढ़ गई और इसका परिणाम यह हुआ कि बारामुला और बाँदीपुरा जिलों में बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर काफी कम हो गई और महिलाओं ने भी कालीन की बुनाई का काम करने में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया.