सूक्ष्म ऋण नवाचार

नाबार्ड अपने सूक्ष्म ऋण नवप्रवर्तन विभाग (एमसीआईडी) के माध्यम से लगातार देश में सूक्ष्म वित्त के सुविधाप्रदाता की भूमिका निभाता रहा है. विभाग का विज़न है – किफायती और संधारणीय रीति से विभिन्न सूक्ष्म वित्त नवोन्मेषों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के वित्तीय सेवाओं से वंचित निर्धनों को सतत वित्तीय सेवाएँ पहुँचाना.

नाबार्ड ने निरंतर इस बात पर भी ध्यान केन्द्रित किया है कि विभिन्न हितधारक एक साझा प्लेटफॉर्म पर आएँ और उनका क्षमता निर्माण किया जाए ताकि वे इन प्रयासों को आगे बढ़ाएँ. इसका परिणाम विभिन्न तरीकों से सूक्ष्म वित्त क्षेत्र की उल्लेखनीय वृद्धि के रूप में सामने आया है. इन तरीकों का विवरण नीचे दिया गया है.

स्वयं सहायता समूह - बैंक सहबद्धता कार्यक्रम (एसएचजी-बीएलपी)

विभिन्न अनुसन्धान अध्ययनों और नाबार्ड द्वारा संचालित एक कार्य अनुसन्धान परियोजना के प्रेक्षणों पर आधारित मॉडल “एसएचजी-बीएलपी” वित्तीय सेवाओं से पूर्णत: और अंशतः वंचित निर्धन परिवारों तक वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराने के किफायती तंत्र के रूप में विकसित हुआ है. जो कार्यक्रम एक प्रायोगिक परियोजना के रूप में 500 समूहों को औपचारिक वित्तीय संस्थाओं से सहबद्ध करने के साथ वर्ष 1992-93 में शुरू हुआ था, वह आज ग्राहक-आधार और पहुँच, दोनो दृष्टियों से विश्व का सबसे बड़ा सूक्ष्म वित्त कार्यक्रम बन चुका है. जो एसएचजी “पंचसूत्र” का पालन करते हैं अर्थात् नियमित रूप से समूह की बैठकें आयोजित करते हैं, समूह के भीतर नियमित बचत करते हैं, सदस्यों की माँग के आधार पर आतंरिक ऋणीकरण करते हैं, समय से ऋण की चुकौती करते हैं, और सही प्रकार से खाते का हिसाब-किताब रखते हैं, उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाला एसएचजी माना जाता है और उन्होंने गत वर्षों में यह भी सिद्ध किया है कि वे बैंक के अच्छे ग्राहक हैं.

एनजीओ सेक्टर ने भी स्वयं सहायता संवर्धन संस्थाओं (एसएचपीआई) के रूप में समूहों के संगठन, संपोषण और उन्हें बैंकों के साथ ऋण-सहबद्ध करने में महत्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका निभाई है. नाबार्ड ने बाद में ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक और पैक्स), किसान क्लबों, एसएचजी महासंघों, एकल ग्रामीण वालंटियरों आदि को एसएचपीआई के रूप में अपने साथ जोड़ा है. इन सभी हितधारकों को नाबार्ड से संवर्धनात्मक अनुदान सहायता के माध्यम से एसएचजी के संवर्धन का दायित्व लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया. यह बचत-केन्द्रित सूक्ष्म वित्त मॉडल आज विश्व का सबसे बड़ा, समन्वय के साथ चलने वाला वित्तीय समावेशन कार्यक्रम बन गया है जिसमें देश के लगभग 14.2 करोड़ परिवार शामिल हैं. चूँकि 87% से अधिक एसएचजी पूर्ण रूप से महिला समूह हैं, इसलिए इस कार्यक्रम ने महिला सशक्तीकरण को आगे बढ़ाने लिए अत्यावश्यक बल प्रदान किया है.

आन्दोलन को पूर्ण समर्थन देने और संवर्धन के लिए सहयोग देने के अलावा, नाबार्ड ने बैंक और सरकार के स्तरों पर नीतिगत पक्षपोषण के माध्यम से, और सभी हितधारकों अर्थात् बैंकरों, सरकारी एजेंसियों, एनजीओ साझेदारों, और सबसे महत्वपूर्ण एसएचजी के सदस्यों के लाभ के लिए अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं के आयोजन और प्रायोजन के माध्यम से एक सम्पूर्ण समर्थकारी पारिस्थितिकी के निर्माण को संभव बनाया है. एसएचजी के वित्तपोषण के लिए बैंकों को नाबार्ड द्वारा 100% पुनर्वित्त भी उपलब्ध कराया जाता है. समय-समय पर सामने आने वाली परिचालनगत समस्याओं के समाधान के लिए उत्पाद के स्तर पर अनेक परिवर्तन किए गए, जैसे समूह में स्वैच्छिक बचत की अनुमति देना, एसएचजी को कैश क्रेडिट/ ओवरड्राफ्ट मंजूर करने की प्रणाली शुरू करना, एसएचजी के अंतर्गत जेएलजी के गठन की अनुमति देना, जोखिम शमन प्रणालियों में सुधार करना, एसएचजी महासंघ जैसी द्वितीयक स्तर की संस्थाओं के गठन की अनुमति देना आदि. इसके अलावा, एसएचजी सदस्य आजीविका गतिविधियाँ शुरू करने में समर्थ हों, इसके लिए नाबार्ड एसएचजी के लिए सूक्ष्म उद्यम विकास कार्यक्रमों (एमईडीपी) और आजीविका और उद्यम विकास कार्यक्रमों (एलईडीपी) को सहयोग देता रहा है.
नाबार्ड भारत सरकार द्वारा घोषित विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में भी सहयोगी रहा है. ये कार्यक्रम हैं, वित्त मंत्रालय का देश के पिछड़े और वामपंथी अतिवाद प्रभावित जिलों में महिला एसएचजी का संवर्धन, और ग्रामीण विकास मंत्रालय का राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम).

संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) का वित्तपोषण

नाबार्ड ने 2004-05 में आठ राज्यों में 13 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के सहयोग से जेएलजी के वित्तपोषण की प्रायोगिक परियोजना शुरू की. बाद में 2006 में इस योजना को बैंकिंग प्रणाली की मुख्य धारा में लाया गया. जेएलजी चार से दस सदस्यों वाले ऐसे अनौपचारिक समूह हैं जो एक ही प्रकार की आर्थिक गतिविधि करते हैं और समूह द्वारा बैंक से लिए गए ऋण की चुकौती का दायित्व संयुक्त रूप से लेने के इच्छुक हैं. संयुक्त देयता समूह मूल रूप से ऐसे लघु/ सीमान्त/ बटाईदार किसानों/ आस्ति-विहीन गरीब लोगों का ऋण समूह है जिनके पास अपनी खेती की जमीन का समुचित स्वत्व-विलेख नहीं होता. जेएलजी के सदस्यों की नियमित बचत विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक होती है और उनकी ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति वित्तीय संस्थाओं से ऋण के माध्यम से की जाती है और ये ऋण पारस्परिक गारंटी के समक्ष व्यक्तिगत या सामूहिक ऋण हो सकते हैं.

योजना के अंतर्गत वित्तपोषक बैंकों को 100% पुनर्वित्त उपलब्ध कराने के अलावा नाबार्ड सभी हितधारकों में जागरूकता निर्माण और उनके क्षमता निर्माण के लिए भी वित्तीय सहयोग देता है. नाबार्ड बैंकों और अन्य जेएलजी संवर्धन संस्थाओं को संयुक्त देयता समूहों के गठन और संपोषण के लिए अनुदान सहायता भी प्रदान करता है.

नैबफिन्स लि.

नाबार्ड ने नैबफिन्स का प्रवर्तन करते समय यह परिकल्पना की थी कि नैबफिन्स एक मॉडल सूक्ष्म वित्त संस्था (एमएफआई) के रूप में विकसित होगा जो इन संस्थाओं में अभिशासन (गवर्नेंस) के मानक स्थापित करेगा, ऐसी पारदर्शिता के साथ काम करेगा जिसका उदहारण दिया जा सके और तर्कसम्मत/ साधारण ब्याज दर पर परिचालन करेगा. यह एक एनबीएफसी-एमएफआई है जिसने नवम्बर 2009 में परिचालन आरम्भ किया.

नाबार्ड इस एमएफआई का सबसे बड़ा शेयरधारक है, अन्य शेयरधारक हैं कर्नाटक सरकार, केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया, बैंक ऑफ़ बडौदा, फेडरल बैंक और धनलक्ष्मी बैंक. नैबफिन्स अपने प्रशिक्षित बिजनेस और विकास कॉरेस्पोंडेंट (बीडीसी) के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों को ऋण देता है. नैबफिन्स महासंघ जैसे अन्य द्वितीयक संगठनों को भी ऋण देता है. नाबार्ड नैबफिन्स को पुनर्वित्त सहायता देना जारी रखे हुए है. नैबफिन्स के बारे में अधिक जानकारी www.nabfins.org से प्राप्त की जा सकती है.

नाबार्ड ने नैबफिन्स को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखण्ड राज्यों में जेएलजी के संवर्धन और स्व-वित्तपोषण/ प्रत्यक्ष ऋण-सहबद्धता के लिए जेएलजी संवर्धन संस्था के रूप में एक प्रायोगिक परियोजना मंजूर की है.

ग्राहकों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए सहयोग

बैंकरों, गैर-सरकारी संगठनों, सरकारी अधिकारियों, एसएचजी के सदस्यों और प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को समुचित रूप से मान्य करते हुए नाबार्ड ने 31 मार्च 2022 की स्थिति के अनुसार, एफआईएफ के अंतर्गत को 44.42 लाख प्रतिभागियों और महिला एसएचजी विकास निधि के अंतर्गत 4.30 लाख प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया है.

सूक्ष्म उद्यम विकास कार्यक्रम (एमईडीपी)

नाबार्ड 2006 से ऐसे परिपक्व स्वयं सहायता समूहों के लिए आवश्यकता-आधारित कौशल विकास कार्यक्रमों को सहयोग देता रहा है जिन्होंने बैंक वित्त तक पहले ही पहुँच बना ली हो. एमईडीपी सम्बंधित स्थान पर ही आयोजित किए जाने वाले कौशल विकास कार्यक्रम हैं जिनमें एसएचजी सदस्य जिन उत्पादन गतिविधियों में लगे हैं उनमें कौशल की कमी को दूर करने या विद्यमान कौशल को इष्टतम स्तर तक ले जाने का प्रयास किया जाता है. पात्र प्रशिक्षण संस्थाओं और स्वयं सहायता संवर्धन संस्थाओं को अनुदान सहायता दी जाती है ताकि वे कृषि/ कृषीतर क्षेत्र की गतिविधियों में कौशल विकास प्रशिक्षण दे सकें जिनके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत या सामूहिक आधार पर सूक्ष्म उद्यम स्थापित किए जा सकें. 31 मार्च 2022 की स्थिति के अनुसार, संचयी रूप से रु.42.46 करोड़ की कुल अनुदान सहायता से आयोजित 19,203 एमईडीपी के माध्यम से 5.47 लाख एसएचजी सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया है.

आजीविका और उद्यम विकास कार्यक्रम (एलईडीपी)

एसएचजी सदस्यों के कौशल उन्नयन प्रशिक्षण का बहुत सीमित प्रभाव आजीविका सृजन पर होता है, इसे ध्यान में रखते हुए यह उचित समझा गया कि एसएचजी सदस्यों के लिए संधारणीय आजीविका का सृजन किया जाए और उनके कौशल उन्नयन प्रशिक्षण का इष्टतम लाभ प्राप्त किया जाए. इस प्रकार दिसंबर 2015 में आजीविका और उद्यम विकास कार्यक्रम (एलईडीपी) के नाम से एक नई योजना शुरू की गई. इसमें क्लस्टरों में आजीविका संवर्धन कार्यक्रम आयोजित करने की परिकल्पना है. इसमें कौशल निर्माण के लिए सघन प्रशिक्षण, पुनश्चर्या प्रशिक्षण, बैकवर्ड-फॉरवर्ड लिंकेज और आरंभिक मार्गदर्शन और सहयोग के साथ-साथ एस्कोर्ट सहयोग भी शामिल है. इसमें सम्पूर्ण मूल्य शृंखला को भी शामिल किया गया है और एसएचजी सदस्यों को आद्योपांत सहयोग दिया जाता है. इस योजना को परियोजना आधार पर कार्यान्वित किया जाता है जिसमें आस-पास के गाँवों के क्लस्टर के 15 से 30 स्वयं सहायता समूहों से एसएचजी सदस्यों में से प्रतिभागियों का चयन किया जाता है.

कौशल उन्नयन प्रशिक्षण 25-30 सदस्यों के बैचों में दिया जाता है और प्रशिक्षण के विषय के रूप में कृषि और अनुषंगी गतिविधियों और कृषीतर गतिविधियों को भी शामिल किया जाता है. एलईडीपी न केवल संधारणीय आजीविका के सृजन में मददगार होगा बल्कि संवर्धनात्मक सहायता का पूरा लाभ भी ग्रहण करेगा. नाबार्ड कौशल उन्नयन कार्यक्रमों के लिए, प्रदर्शन इकाई की स्थापना के लिए और आवश्यकता के आधार पर महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना के लिए अनुदान सहायता उपलब्ध कराएगा. एलईडीपी को मई 2017 में मुख्य धारा में लाया गया. 31 मार्च 2022 की स्थिति के अनुसार, संचयी रूप से रु.77.14 करोड़ की कुल अनुदान सहायता से 1641 कार्यक्रमों का आयोजन कर 1.83 लाख एसएचजी सदस्यों को सहयोग दिया गया.

नैबफाउण्डेशन के माध्यम से अखिल भारतीय एलईडीपी

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस अर्थात् 15 अक्टूबर 2020 को नैबफाउण्डेशन के माध्यम से एक अलग तरह के एलईडीपी “मेरा पैड मेरा अधिकार” को लांच किया गया. परियोजना का शुभारम्भ श्रीमती स्मृति ईरानी, माननीया मंत्री, महिला और बाल विकास तथा कपड़ा मंत्रालय तथा पद्मश्री श्री अरुणाचलम मुरुगनन्तम ने किया जिन्होंने पुरस्कृत किफायती पैड बनाने की मशीन को डिजाइन किया है और जो इस परियोजना के तकनीकी साझेदार हैं.

परियोजना के अंतर्गत एलईडीपी माध्यम का उपयोग एसएचजी सदस्यों को सैनिटरी पैड बनाने की मशीन के जरिये आजीविका उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है जिसके तहत उन्हें पैड के उत्पादन और विपणन के लिए अपेक्षित कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है. सम्बंधित एसएचजी सदस्यों के लिए आजीविका के सृजन के साथ ही इस परियोजना का उद्देश्य माहवारी के दौरान महिलाओं की स्वच्छता की स्थिति में सुधार लाना भी है. वर्ष के दौरान, परियोजना परिव्यय की कुल राशि रु.1.99 करोड़ में से रु.1.63 करोड़ का उपयोग किया जा चुका है, 34 मशीनें लगाईं जा चुकी हैं और 34 जिलों के 1128 गाँवों में पैड का उत्पादन शुरू हो चुका है.

जेएलजी और एमईडीपी/ एलईडीपी दिशानिर्देशों में संशोधन

उद्यम और आजीविका कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाने के लिए एमसीआईडी, नाबार्ड ने एमईडीपी और एलईडीपी के दिशानिर्देशों में संशोधन किया. इन कार्यक्रमों में अब जेएलजी के सदस्यों को प्रतिभागियों के रूप में शामिल करना, प्रतिभागियों के लिए दैनिक वृत्ति, बाजार लिंकेज, ई-विपणन, ब्रांडिंग और पैकेजिंग पर अतिरिक्त प्रशिक्षण, प्रदर्शन इकाई स्थापित करने और साथ ही प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र जारी करने का प्रावधान है ताकि वे उद्यम स्थापित करने के लिए बैंक से ऋण प्राप्त करने में समर्थ हों. अनुदान सहायता की राशि में भी वृद्धि की गई है, एमईडीपी के लिए राशि रु.0.50 लाख से बढ़ाकर रु.1.0 लाख, एलईडीपी के लिए रु.6.43 लाख से बढ़ाकर रु.8.80 लाख (कृषि क्षेत्र के लिए) और रु.4.98 लाख से बढ़ाकर रु.7.15 लाख (कृषीतर क्षेत्र के लिए) कर दी गई है.

उद्यमिता विकास के लिए प्रायोगिक परियोजना

नाबार्ड ने एसएचजी/ जेएलजी सदस्यों के लिए सूक्ष्म उद्यम मॉडल विकसित करने का प्रयास जारी रखा. वर्ष 2021-22 के दौरान, कौशल सेटों की पहचान, क्षमता निर्माण, ऋण और बाजार लिंकेज में समर्थ बनाकर और उसकी सुविधा उपलब्ध कराकर महिला एसएचजी की सदस्यों को उद्यमी बनने के लिए आद्योपांत समाधान उपलब्ध कराने के लिए फ्रेंड्स ऑफ़ विमेन्स वर्ल्ड बैंकिंग, इंडिया (एफडब्ल्यूडब्ल्यूबी) को एक और अर्थइम्पैक्ट वेलफेयर फाउण्डेशन को एक प्रायोगिक परियोजना मंजूर की गई.

‘महिलाओं की आजीविकाओं और उद्यमिता के संपोषण’ पर एफडब्ल्यूडब्ल्यूबी को रु.65.42 लाख की वित्तीय सहायता के साथ मंजूर की गई पहली प्रायोगिक परियोजना गुजरात, नागालैंड और मणिपुर के 9 जिलों में कार्यान्वित की जानी है जिनमें 3 आकांक्षी जिले और 5 महिला एसएचजी जिले शामिल हैं, ताकि 800 ग्रामीण महिलाओं द्वारा सूक्ष्म उद्यमों का संवर्धन किया जा सके जिनमें से 400 उद्यमों को ऋण से जोड़ा जाएगा. परियोजना के अंतर्गत पारिवारिक आय में 25% की वृद्धि का अनुमान है.

अर्थइम्पैक्ट वेलफेयर फाउण्डेशन को मंजूर दूसरी प्रायोगिक परियोजना उत्तर प्रदेश के लखनऊ, रायबरेली और अयोध्या जिलों में कार्यान्वित की जानी है जिसके अंतर्गत नाबार्ड की रु.35 लाख की अनुदान सहायता से 500 महिला उद्यमियों का संवर्धन किया जाएगा. संभावित लाभार्थियों का चयन स्वयं सहायता समूहों से किया जाएगा और उन्हें पाँच पूर्व-चिह्नित व्यवसायों, नामतः बुनाई (चिकनकारी), ब्यूटी पार्लर/ सैलून, फ़ूड कार्ट, वित्तीय समावेशन सखी और ई-रिक्शा, में से किसी एक का प्रशिक्षण सम्बंधित ज्ञान साझेदारों के सहयोग से दिया जाएगा. कौशल प्रशिक्षण के पूरा होने के बाद उन्हें ज्ञान साझेदारों, नामतः एनआईएफटी/ एनआईडी (चिकनकारी के लिए), अर्बन कंपनी/ वीएलसीसी (ब्यूटी पार्लर/ सैलून के लिए), पीएचआई/ स्विगी (फ़ूड कार्ट के लिए), माइक्रोसेव कंसल्टिंग (वित्तीय समावेशन सखी के लिए) और आज़ाद फाउण्डेशन (ई-रिक्शा के लिए) के साथ सहबद्ध कर दिया जाएगा ताकि बैंकों/ अन्य वित्तीय संस्थाओं के ऋण के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के 500 सूक्ष्म उद्यम स्थापित हो सकें.

भारत के पिछड़े और वामपंथी अतिवाद से प्रभावित जिलों में महिला एसएचजी के संवर्धन की योजना

माननीय वित्त मंत्री द्वारा केन्द्रीय बजट 2011-12 में की गई घोषणा के बाद मार्च-अप्रैल 2012 में देश के 150 पिछड़े और वामपंथी अतिवाद से प्रभावित जिलों में भारत सरकार के साथ मिलकर महिला एसएचजी के संवर्धन और वित्तपोषण की योजना शुरू की गई. इस योजना का लक्ष्य एंकर एजेंसियों को साथ लेकर इन जिलों में व्यवहार्य तथा स्वत: संधारणीय महिला एसएचजी से संतृप करना था. एंकर एजेंसियाँ इन महिला समूहों का संवर्धन करेंगी और बैंकों के साथ उनकी ऋण-सहबद्धता में सहयोग करेंगी, लगातार उनका आरंभिक सहयोग और मार्गदर्शन करेंगी, उन्हें अपनी आजीविका तक पहुँचने की यात्रा में समर्थ बनाएँगी और साथ ही ऋण की चुकौती का दायित्व भी लेंगी. योजना के अंतर्गत एसएचपीआई के रूप में काम करने के अतिरिक्त एंकर एजेंसियों से यह भी अपेक्षित है कि वे नोडल कार्यान्वयक बैंकों के लिए बैंकिंग/ बिजनेस फैसिलिटेटर के रूप में काम करेंगी.

योजना के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवाएँ विभाग द्वारा नाबार्ड में रु.500 करोड़ की घोषित समूह निधि के साथ अलग से एक निधि सृजित की गई थी जिसका नाम ‘महिला एसएचजी विकास निधि’ है जिसमें से एंकर एजेंसी को रु.10,000/- प्रति एसएचजी का भुगतान किया जाता है और साथ ही इस निधि से प्रशिक्षण और अन्य क्षमता निर्माण प्रयासों के लिए भी व्यय किया जाता है. 31 मार्च 2022 की स्थिति के अनुसार, संवर्धित महिला एसएचजी की संख्या 2.11 लाख और ऋण-सहबद्ध महिला एसएचजी की संख्या 1.29 लाख है.

वित्तीय वर्ष 2020-21 में ग्राम दूकानों, प्रभाव आकलन अध्ययनों, फिल्मों, एक्सपोज़र दौरों, प्रकाशनों, मेलों, प्रदर्शनियों, विपणन के लिए गठजोड़ के संवर्धन आदि गतिविधियों के लिए शुरू किए गए सहयोग के कारण ऋण की खपत 2019-20 के रु.725.42 लाख से बढ़कर 2021-22 में रु.933.74 लाख हो गई.

अन्य हितधारकों के साथ सहयोग

एसएचजी-बीएलपी सेक्टर में नाबार्ड सभी हितधारकों के साथ निकट समन्वय से काम करता है. एसएचजी-बीएलपी के संबंध में हितधारकों के साथ राष्ट्र-स्तरीय संगोष्ठियों और कार्यशालाओं, पारस्परिक संवाद के आयोजन और क्षमता निर्माण के कार्य अब नियमित रूप से होने लगे हैं.

ग्राम स्तरीय कार्यक्रमों (वीएलपी) का आयोजन

बैंकों, एसएचजी और एसएचपीआई के बीच पारस्परिक आवश्यकताओं की बेहतर समझ पैदा करने, और जमीनी स्तर पर ऋण-सहबद्धता और चुकौती जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिए बैंकों और एनआरएलएम के सहयोग से ग्राम स्तरीय कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. नाबार्ड द्वारा प्रायोजित इन ग्राम स्तरीय कार्यक्रमों से एसएचजी खातों को खोलने, उन्हें ऋण-सहबद्ध करने और ऋण की नियमित चुकौती में भी मदद मिलती है.

एमसीआईडी द्वारा संचालित अध्ययनों की स्थिति

नाबार्ड आरंभ से ही कृषि और कृषीतर क्षेत्र की समस्याओं के विषय में नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करने लिए विभिन्न विषय-क्षेत्रों में अनुसन्धान और विकास तथा अध्ययनों पर बल देता रहा है ताकि उनके निष्कर्षों का उपयोग करते हुए इन क्षेत्रों में आगे और विकास के लिए नई नीतियाँ, नवोन्मेषी उत्पाद और पद्धतियाँ तैयार की जा सकें. वर्ष 2021-22 के दौरान एमसीआईडी ने एसएचजी, सूक्ष्म ऋण, कौशल विकास आदि से जुड़े विषयों पर 6 राज्यों में 12 अध्ययन कराए. सीआरएफआईएम द्वारा नाबार्ड के सहयोग से कराए गए अध्ययनों के अलावा इन अध्ययनों को मोटे तौर पर तीन उप-शीर्षों में बाँटा जा सकता है, नामतः एलईडीपी सम्बन्धी, एमईडीपी संबंधी और महिला एसएचजी सम्बन्धी.

एमसीआईडी द्वारा संचालित अध्ययनों की स्थिति

नाबार्ड आरंभ से ही कृषि और कृषीतर क्षेत्र की समस्याओं के विषय में नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करने लिए विभिन्न विषय-क्षेत्रों में अनुसन्धान और विकास तथा अध्ययनों पर बल देता रहा है ताकि उनके निष्कर्षों का उपयोग करते हुए इन क्षेत्रों में आगे और विकास के लिए नई नीतियाँ, नवोन्मेषी उत्पाद और पद्धतियाँ तैयार की जा सकें. वर्ष 2021-22 के दौरान एमसीआईडी ने एसएचजी, सूक्ष्म ऋण, कौशल विकास आदि से जुड़े विषयों पर 6 राज्यों में 12 अध्ययन कराए. सीआरएफआईएम द्वारा नाबार्ड के सहयोग से कराए गए अध्ययनों के अलावा इन अध्ययनों को मोटे तौर पर तीन उप-शीर्षों में बाँटा जा सकता है, नामतः एलईडीपी सम्बन्धी, एमईडीपी संबंधी और महिला एसएचजी सम्बन्धी.

एसएचजी पर फ़िल्में

एमसीआईडी नियमित रूप से नाबार्ड से सहायता प्राप्त करने वाली ग्रामीण महिला उद्यमियों द्वारा हासिल सफलताओं को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए फ़िल्में बनाता रहा है.

एसएचजी की संकल्पना और सफलता का चित्रांकन करती कुछ फ़िल्में हैं:

भारत में सूक्ष्म वित्त की स्थिति

स्वयं सहायता समूह – बैंक सहबद्धता कार्यक्रम की मुख्य बातें

महिला एसएचजी अभिलेखागार की स्थिति

हम क्या करते हैं