यदि एक शताब्दी से भी अधिक पुरानी किसी संस्था को एक आधुनिक संस्था में रूपांतरित करना हो तो इसके लिए दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृढ़तर संस्थागत बल के आवश्यकता होती है.
और यह हो रहा है भारत के सहकारिता क्षेत्र में, जहाँ सरकार ने 2022-23 से 2026-27 तक की पाँच वर्ष की अवधि के लिए प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के कम्प्यूटरीकरण के लिए एक केंद्र-प्रायोजित परियोजना मंजूर की है, जिसका कार्यान्वयन नाबार्ड द्वारा किया जा रहा है.
प्रथमतः 1904 में स्थापित किया गया पैक्स लोगों के स्वामित्व में लोकतांत्रिक तरीके से चलने वाली संस्था है और ये संस्थाएँ आज ऐसी आधार-स्तरीय संस्थाएँ बन चुकी हैं जो किसानों को उनकी विभिन्न कृषि और फार्मिंग सम्बन्धी गतिविधियों के लिए अल्पावधि और मध्यावधि कृषि ऋण उपलब्ध कराती हैं. सौ वर्षों से भी अधिक समय से ये समितियाँ भारत में सहकारी बैंकिंग के निर्माण का आधार रही हैं. पैक्स के सदस्यों की संख्या बहुत बड़ी है, लगभग 13 करोड़ किसान इनके सदस्य हैं और ये त्रि-स्तरीय सहकारी संरचना की अंतिम कड़ी हैं जिसके शीर्ष पर राज्य सहकारी बैंक (रास बैंक) और उनके बाद जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक (जिमस बैंक) हैं.
पैक्स का स्वामित्व किसानों, ग्रामीण कारीगरों आदि के पास है और इनका उद्देश्य सदस्यों के बीच छोटी बचत और पारस्परिक सहयोग का संवर्धन करना, सदस्यों की ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करना और निविष्टि-आपूर्ति करना और साथ ही कृषि उपज के भण्डारण तथा विपणन आदि जैसी ऋण-सहबद्ध सेवाएँ उपलब्ध कराना है. जिमस बैंक प्रत्यक्ष वित्तपोषण के माध्यम से उन्हें प्रत्यक्ष लिंकेज उपलब्ध कराते हैं. रास बैंकों का प्राथमिक दायित्व जिमस बैंकों का वित्तीय नियंत्रण और समन्वय करना है.
सहकारिता मंत्रालय की ओर से नाबार्ड पैक्स के कम्प्यूटरीकरण की केंद्र-प्रायोजित परियोजना का कार्यान्वयन कर रहा है, जिसके अंतर्गत पैक्स को एक कम्प्यूटर यूनिट और उसके एसेसरीज उपलब्ध कराने का प्रयास करना है, जो राष्ट्रीय स्तर के सॉफ्टवेयर से समर्थित हो ताकि वे अपने परिचालन बेहतर पारदर्शिता और दक्षता के साथ डिजिटल रूप में संचालित कर सकें.
डिजिटलीकरण में पैक्स को शामिल कर लिए जाने के बाद सहकारी संरचना के तीनो स्तरों का पूर्ण रूप से डिजिटलीकरण हो जाएगा. इससे वह बुनियाद तैयार हो जाएगी जिस पर आगे की अत्याधुनिक, उन्नत प्रौद्योगिकियों को खड़ा किया जा सकेगा जिससे सदस्य लाभान्वित हों और पैक्स सामयिक चुनौतियों का सामना करने में समर्थ हो सकें.
कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से पैक्स को ऐसे बहु-सेवा केंद्र (एमएससी) में रूपांतरित करने में सहयोग मिलेगा जो कृषि और अनुषंगी गतिविधियों को शामिल करते हुए अनेक उत्पाद तथा सेवाएँ उपलब्ध करा सकेंगे और इस प्रकार पैक्स की पूरी क्षमता का उपयोग संभव होगा. इस पहल के साथ नाबार्ड चाहता है कि पैक्स को देश के बृहत्तर, अधिक क्रियाशील डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाया जाए ताकि देश के दूर-दराज के इलाकों में रहने वाली ग्रामीण आबादी भी भारत के विशाल से विशालतर होते जाते प्रौद्योगिकीय परिदृश्य से लाभान्वित हो सके.
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